Jatayu Katha: रामायण में गिद्धराज जटायु की खास भूमिका रही है. जटायु और राम से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार जब लंकापति रावण सीता का हरण कर उसे पुष्पक विमान से ले जा रहे होते हैं तो जटायु रावण के साथ युद्ध करते हैं और माता सीता को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं. लेकिन रावण के प्रहार से जटायु बुरी तरह से घायल हो जाते हैं.
हिरण मारीच का वध करने के बाद जब भगवान और लक्ष्मण कुटिया में पहुंचते हैं तो वहां मां सीता को न पाकर चिंतित हो जाते हैं. सीता जी को वे जंगल और नदी के किनारे ढूंढते हैं. सीता जी तो उन्हें नहीं मिलती. लेकिन रास्ते में जटायु मरणासन्न अवस्था में मिलते हैं. जटायु को घायल अवस्था में देख भगवान राम उन्हें गोद में उठा लेते हैं और घायल होने का कारण पूछते हैं. तब जटायु रामजी को माता सीता के हरण के बारे में बताते हैं .
जटायु राम से कहते हैं कि, सीता को रावण ले गया है और जब मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो उसने अपनी खड़क से मेरे पंख काट डाले. मैं यह सब बताने के लिए आपकी ही राह देख रहा था. इतना कहकर गिद्धराज जटायु अपने प्राण का त्याग कर देते हैं. कहा जाता है कि जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नामक स्थान में हुई थी, जोकि वर्तमान में नासिक के ताकेड गांव में है. मरणासन्न स्थिति में जटायु ने भगवान राम को सीता जी का समाचार दिया था, इसलिए इस स्थान को सर्वतीर्थ कहा जाता है.
रामजी ने किया था जटायु का अंतिम संस्कार
गीध देह तजि धरि हरि रूपा।
भूषन बहु पट पीत अनूपा।।
स्याम गात बिसाल भुज चारी।
अस्तुति करत नयन भरि बारी।।
जयाटु के देह त्यागने के बाद भगवान राम की आंखों में आंसुओं की धारा बहने लगती है और राम पिता के समान जटायु का अंतिम संस्कार करते हैं और सभी जरूरी पितृकर्म को भी पूरा करते हैं. बता दें कि भगवान राम ने गोदावरी नदी के तट पर जटायु का अंतिम संस्कार किया था.
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