भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए किस दिन करें व्रत, यहां जानें
Puja : मनोकामना पूर्ति लिए कैसे करें शिव-पार्वती का व्रत और पूजन, क्या है व्रत कथा. जानें कथा में साहूकार को कैसे हुई शिव कृपा से पुत्र की प्राप्ति.
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Puja : देवों के देव महादेव बहुत भोले हैं. इसलिए इनका नाम भोलेनाथ भी है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त के मन में यदि क्षणिक मात्र भी भक्ति हैं तो भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करना बहुत आसान है अगर आप भी शिव भक्ति और उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो विस्तृत रूप से आइए जानते हैं उनके शुभ वार सोमवार को उनकी पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में -
सोमवार व्रत की पूजा विधि -सोमवार के दिन सुबह प्रातःकाल सभी कार्यो से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. उसके बाद शिवलिंग पर जल अर्पित करके पूजा करनी चाहिए. सोमवार के व्रत में शिव - पार्वती का पूजन कर तीसरे पहर भोजन ग्रहण कर लिया जाता है. व्रत को कार्तिक माह या सावन माह से आरम्भ करना शुभ माना जाता है. मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शंकर की पूजा-अर्चना और व्रत करना शुभ फल देने वाला होता है.
सोमवार व्रत की कथा- एक नगर में एक धनवान साहूकार रहता था. उसके कोई संतान नहीं थी. इसलिए वह बहुत दुखी रहता था. पुत्र की कामना के लिये वह प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन करता था तथा सायंकाल शिवजी के मंदिर में प्रतिदिन दीपक जलाया करता था. उसकी अनन्य भक्ति को देखकर एक दिन माता पार्वती जी ने शिवजी से उसकी मनोकामना पूर्ण करने को कहा. शिवजी ने कहा, "हे पार्वती, इसके भाग्य में पुत्र का सुख नहीं है फिर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूं . परन्तु वह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा. मां पार्वती और भगवान शिव की वार्तालाप साहूकार ने सुन ली. वह पूर्व की तरह शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा. कुछ समय बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई तथा दसवें महीने में उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया.
साहूकार जानता था कि इसकी 12 वर्ष की आयु है अतः वह अधिक प्रसन्न नहीं हो सका, परन्तु उसने यह राज किसी को नहीं बताया. जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो बालक की मां ने उसका विवाह करने के लिये कहा. साहूकार ने मना कर दिया और बालक को मामा के साथ काशी पढ़ने भेज दिया. बालक के मामा को बहुत सा धन देकर साहूकार ने कहा जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते हुए जाना. काशी जाते समय रास्ते में एक शहर पड़ा उस शहर की राजकन्या का विवाह था. जिस राजकुमार के साथ राजकुमारी की शादी होने वाली थी वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता को इस बात की चिंता थी कि राजकुमार को देखकर राजकुमारी के माता पिता कहीं उससे विवाह के लिये मना न कर दें. राजा ने साहूकार के लड़के को देखा तो सोचा कि इस सुन्दर लड़के से वर का काम चला लिया जाये तो अच्छा है. राजा ने उस लड़के तथा मामा से बात की. वे राजी हो गये राजा ने इस कार्य के लिये उन्हें काफी धन दिया. साहूकार के लड़के को वर के कपड़े पहना कर तथा घोड़ी पर बैठा कर राजकन्या के द्वार पर ले गये.
विवाह सम्पन्न होने के बाद जब साहूकार का लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिख दिया, 'तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ किन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको विदा करेंगे वह एक आंख से काना है. मैं काशी पढ़ने जा रहा हूं. "राजकन्या ने इसे पढ़ कर काने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया. बारात वापस चली गयी. साहूकार का लड़का और उसके मामा काशी पहुंच गये. लड़के ने वहां पढ़ना और उसके मामा ने यज्ञ करना शुरू कर दिया. जिस दिन लड़के ने 12 वर्ष की आयु पूरी की, उस दिन भी मामा ने यज्ञ रच रखा था. लड़के की अचानक तबियत खराब हो गई. मामा ने उसे अन्दर जाकर सो जाने के लिये कहा. लड़का अन्दर जाकर सो गया. थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गये. जब उसके मामा ने अन्दर आकर देखा कि उसका भांजा मृत पड़ा है तो उसको बहुत दुख हुआ. उसने किसी तरह अपने को संयम रखकर यज्ञ का कार्य समाप्त किया. ब्राह्मणों के जाने के बाद उसने रोना पीटना शुरू किया. दैव योग से शिव पार्वती उस समय संयोगवश उधर से जा रहे थे. उसका विलाप सुनकर पार्वती जी ने शिवजी से उसका दुख दूर करने की प्रार्थना की. शिव - पार्वती ने वहां पहुंचकर देखा कि उसी साहूकार का लड़का जो शिवजी के वरदान से पैदा हुआ था, अपनी 12 वर्ष की आयु पूरी कर मर चुका था.
शिवजी ने कहा इसकी जितनी आयु थी वह पूरी हो गई. मां पार्वती ने उनसे प्रार्थना की, "हे भगवान इसको और आयु दो नहीं तो इसके माता - पिता तड़प - तड़प कर मर जायेंगे. "मां पार्वती की प्रार्थना पर शिवजी ने उसको जीवित कर दिया. शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गये. जब साहूकार के लड़के की शिक्षा पूरी हो गई तो वह लड़का और उसका मामा उसी प्रकार यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दान - पुण्य करते हुए घर की ओर चल पड़े. पहले उस शहर में आये जहां राजकुमारी के साथ उसका विवाह हुआ था. वहां भी उन्होंने यज्ञ किया. वहां के राजा ने साहूकार के लड़के को पहचान लिया. राजा ने मामा भान्जे का बहुत आदर सत्कार किया.
बहुत सम्मान के साथ उन दोनों को महल में ले गया. बहुत से दास - दासियों सहित अतुल धन - सम्पत्ति देकर उसके साथ राजकुमारी को विदा किया. जब वे अपने नगर के निकट पहुंचे. तो मामा ने कहा, "मैं तुम्हारे माता पिता को तुम्हारे आने की सूचना देने जाता हूं. "मामा ने घर पहुंच कर देखा कि लड़के के माता पिता छत पर बैठे हैं. उन्होंने सोच रखा था कि यदि उनका पुत्र जीवित नहीं लौटा तो वे दोनों छत से कूद कर अपनी जान दे देंगे.लड़के के मामा ने समाचार दिया कि आपका पुत्र अपनी पत्नी तथा बहुत सारा धन साथ लेकर आया है. साहूकार व उसकी पत्नी को पहले विश्वास ही नहीं हुआ. जब उसने शपथ पूर्वक कहा कि जो वह कह रहा है सच है तब वे दोनों प्रसन्नता से भर उठे. वह नीचे आये. बाहर जाकर उन्होंने अपने पुत्र तथा पुत्रवधु का हार्दिक स्वागत किया. सभी बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे. जो व्यक्ति सोमवार का व्रत कर कथा को पढ़ता है अथवा सुनता है उसके सब कष्ट दूर हो जाते हैं तथा मनोवांछित फल मिलता है. वह इस लोक में सुख भोग कर अन्त में शिव लोक को प्राप्त होता है.
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