Ganga Dusshera 2023: 30 मई 2023, मंगलवार के दिन गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा. गंगा नदी को हमारे धर्म में पतित पावनि और मोक्ष दायिनी कहा गया है. इतनी पवित्र नदी को कौन दे सकता है श्राप ? वो श्राप जो असल में सारे सनातनी धरती वासियों के लिए बना एक बहुत बड़ा वरदान. आइये जानते हैं आज उसी मनुष्य के बारे में जिसके श्राप से गंगा मां धरती पर अवतरित हुईं.  


दुर्वासा ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र थे.  इनके बारे में आपको अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण और ऋग्वेद जैसे कई पुराणों में लिखा हुआ मिलेगा.  अब दुर्वासा के नाम में ही इनका आचरण भी छुपा हुआ है . दुर्वासा का विच्छेद करें तो आता है दुर यानि की मुश्किल और वास यानि की रहना या फिर रहने में दुष्कर. दुर्वासा ऋषि का लम्बा कद , मटमैला रंग , फटे हुए कपड़े और नाक पर बैठा गुस्सा साड़ी दिशाओं में प्रसिद्ध था.



जब वो अपने दस हज़ार शिष्यों संग कहीं भी निकलते तो हर कोई उनके रास्ते से हट जाता ताकि गलती से भी वो गुस्से में उन्हें श्राप न दे दें. अब ये कथा ऋग्वेद में बताई जाती है की एक बार ऋषि दुर्वासा ब्रह्मलोक में गए. वहां पर छोटी सी गंगा इस बड़े से ऋषि को देख कर उत्सुक हुई.  दुर्वासा नदी पर नहाने को गए तो अचानक वहां तेज़ हवा चली जिसमे उनके कपड़े उड़ गए. भोली सी बच्ची गंगा ने जब ये दृश्य देखा तो उसकी हंसी छूट गई. वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी और दुर्वासा का गुस्सा सांतवे आसमान के पार हो गया.


 दुर्वासा ने उसे अपना अपमान करने के कारण श्राप दिया की वो भविष्य में स्वर्ग लोक से निकल कर धरती पर जाएंगी.  इस श्राप से गंगा को बहुत दुःख हुआ और उसके भोले से चेहरे को देख दुर्वासा ने आगे कहा.  धरती पर जा कर भी तुम्हारा तेज काम नहीं होगा गंगा, और तुम धरती के लोगों को मोक्ष प्रदान करोगी. सालों बाद राजा भगीरथ के मानाने  पर गंगा धरती पर आयी और तब से यहां की सबसे पावन नदियों में इनका नाम आता है और इस प्रकार दुर्वासा ऋषि का श्राप हम सभी धरती वासियों के लिए इतना बड़ा वरदान बन गया और हमे देवी गंगा नदी स्वरुप में मिलीं. 


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