Magh Gupt Navratri 2023 Upay: 22 जनवरी 2023 से माघ महीने गुप्त नवरात्रि शुरू हो रही है. साल में दो गुप्त नवरात्रि आती है. गुप्त नवरात्रि चैत्र और शारदीय नवरात्रि से बहुत अलग होती है.
गुप्त नवरात्रि के नौ दिन देवी सती से प्रकट हुईं 10 महाविद्याओं को समर्पित हैं. ये महाविद्याएं मां काली, मां तारा, मां त्रिपुरासुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुराभैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला हैं. शास्त्रों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में गुप्त तरीके से इन महाविद्याओं की साधना कर सिद्धियां पाई जाती हैं.
गुप्त नवरात्रि में अघोरी और तांत्रिक तामसिक पूजा करते हैं वहीं गृहस्थ जीवन वालों को इसमें देवी की सात्विक पूजा करनी चाहिए. कहते हैं गुप्त नवरात्रि में 9 दिन तक कुछ खास उपाय करने से कारोबार और करियर में उन्नति मिलती है.
माघ गुप्त नवरात्रि उपाय (Gupt Navratri 2023 Upay)
गुप्त नवरात्रि में सामान्य जीवन जीने वालों को 9 दिन तक मां दुर्गा के सामने दो मुखी घी का दीपक लगाकर कीलक स्तोत्र का पाठ करें. मान्यता है इससे नौकरी, व्यापार में आ रही बाधाएं नष्ट हो जाती है और व्यक्ति को तरक्की मिलती है. ध्यान रहे मां दुर्गा की पूजा में पवित्रता बहुत महत्व रखती है. ऐसे में 9 दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ही ग्रहण करें. दुर्गा पूजा-पाठ और मंत्र साधना का फल तभी मिलता है जब नियमों का पालन किया जाए.
कीलक स्तोत्र पाठ (Keelak Stotram Path)
ॐ अस्य श्री कीलक स्तोत्र महामंत्रस्य। शिव ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:
महासरस्वती देवता। मंत्रोदित देव्यो बीजम्। नवार्णो मंत्रशक्ति।
श्री सप्तशती मंत्र स्तत्वं स्री जगदम्बा प्रीत्यर्थे सप्तशती पाठाङ्गत्वएन जपे विनियोग:।
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे। श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे।।1।।
सर्वमेतद्विजानीयान्मंत्राणामभिकीलकम्। सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जप्यतत्परः।।2।।
सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि। एतेन स्तुवतां देवीं स्तोत्रमात्रेण सिद्धयति।।3।।
न मंत्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते। विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्।।4।।
समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः। कृत्वा निमंत्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्।।5।।
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः। समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्निमंत्रणाम्।।6।।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेव न संशयः। कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः।।7।।
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति। इत्थं रूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्।।8।।
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्। स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः।।9।।
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते। नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्।।10।।
ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति। ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः।।11।।
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने। तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जप्यमिदम् शुभम्।।12।।
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्।।13।।
ऐश्वर्यं तत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः। शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः।।14।।
।।इति श्रीभगवत्याः कीलकस्तोत्रं समाप्तम्।।
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