Mahabharat: कौरवों को अपनी शक्ति पर बहुत घंमड था.कौरवों और पांडवों के बीच जब जुआ चल रहा था और युधिष्टर ने जुए में सबकुछ दांव पर लगा दिया. जब उनके पास कुछ भी शेष नहीं बचा तो अंत में उन्होंने द्रोपदी को ही दांव पर लगा दिया. युधिष्टर द्रोपदी को भी जुए में हार गए तो द्रोपदी को सभा में बुलाया गया.


कौरवों की तरफ से विकर्ण ही वो व्यक्ति था जिसने द्रोपदी को सभा में बुलाने का विरोध किया था. इस सभा में राजा धृतराष्ट्र, भीष्म, द्रोणाचार्य, कुलगुरु कृपाचार्य भी उपस्थित थे. इस सभा में द्रोपदी का अपमान किया गया. लेकिन ये सभी महारथी मूक दर्शक बने रहे. तब अकेला विकर्ण ही था जिसने पुरजोर तरीके से इस कृत्य का विरोध किया और आने वाले खतरे के लिए अगाह किया. इतना नहीं विकर्ण ने इस कृत्य के लिए दुर्योधन और दुशासन की आलोचना भी की.


कौन था विकर्ण
विकर्ण धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक था. जो महारथी होने के साथ-साथ न्यायप्रिय और विद्वान व्यक्ति था. द्रोपदी चीरहरण का विरोध करने के बाद भी जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तो विकर्ण ने भाई धर्म का पालन करते हुए कौरवों की तरफ से पांडवों से युद्ध किया. विकर्ण का भीम ने वध किया था, जिसका भीम को बहुत अफसोस हुआ था.


भीम नहीं चाहते थे विकर्ण से लड़ना
महाभारत के युद्ध में जब भीम का सामना विकर्ण से हुआ तो पहले तो भीम विकर्ण से युद्ध नहीं करना चाहते थे. तब विकर्ण ने भीम से कहा वह जानते हैं कि कौरवों की हार होनी है. लेकिन वह सिर्फ अपना कत्र्तव्य निभा रहे हैं और कत्र्तव्य का पालन करने के कारण ही उन्हें युद्ध करना पड़ेगा. द्रोपदी के अपमान पर विकर्ण का कहना था कि उस समय जो उचित था वही किया और हर गलत कार्य पर ऐसे ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए. विकर्ण ने भीम से कहा आप परेशान न हों शस्त्र उठाएं, यही धर्म कहता है. इसके बाद भीम और विकर्ण में भीषण युद्ध हुआ और अंत में भीम न चाहते हुए भी विकर्ण का वध करना पड़ा. जिसका बाद में भीम को बहुत दुख भी हुआ.


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