Mahabharat Katha: दुर्योधन आरंभ से ही पांडवों से शत्रुता रखता था और हर पल उन्हें मारने का षड़यंत्र रचता रहता था. उसके इस काम में उसका मामा शकुनि पूरा साथ देता था. एक बार दुर्योधन ने पांडवों को परिवार सहित खत्म करने की योजना तैयार की. दुर्योधन की यह योजना बहुत ही खतरनाक थी.


शकुनि ने रचा पूरा षड्यंत्र

दुर्योधन ने शकुनि के साथ मिलकर एक खतरनाक साजिश को अंजाम दिया. शकुनि ने दुर्योधन को लाक्षागृह में पांडवों को मारने की युक्ति बताई. दुर्योधन अपने मामा शकुनि की बातों में आ गया और साजिश को चरणबद्ध तरीके से अंजाम देने में जुट गया.


वाणावृत में बनवाया लाक्षागृह


दुर्योधन ने वाणावृत में लाक्षागृह का निर्माण कराया. इसके अवशेष बागपत जिले के बरनावा क्षेत्र में मिलते हैं. इस महल में बनाई गई सुरंग हिंडन नदी के समीप खुलती है. बरनावा में ही दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण कराया था.


पिता धृतराष्ट्र को दुर्याेधन ने ऐसे मनाया


दुर्योधन ने अपनी योजना को सफल बनाने के लिए पिता का भी सहारा लिया. दुर्योधन इस बात को महसूस करने लगा था कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर की जनता के बीच लोकप्रिय हो गए हैं. इन गुणों से प्रभावित होकर भीष्म पितामह युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की इच्छा भी जता चुके हैं. ऐसे में दुर्योधन ने फैसला कर लिया था कि वो किसी भी कीमत पर यह नहीं होने देगा. इसलिए उसने अपने पिता से कहा कि "पिताजी! यदि एक बार युधिष्ठिर को राजसिंहासन मिल गया तो यह राज्य सदा के लिये पांडवों का हो जायेगा. कौरव इनके सेवक बन कर रह जाएंगें. दुर्योधन को समझाते हुए धृतराष्ट्र ने कहा कि बेटा दुर्योधन! युधिष्ठिर सन्तानों में सबसे बड़ा है इसलिये इस राज्य पर उसी का अधिकार है. फिर भीष्म तथा प्रजाजन भी उसी को राजा बनाना चाहते हैं." धृतराष्ट्र के वचनों को सुन कर दुर्योधन ने कहा, "पिताजी! मैंने इसका प्रबन्ध कर दिया है, बस आप किसी तरह पाण्डवों को वारणावत भेजने के लिए कह दें."


विशेष ढंग से बनवाया गया था लाक्षागृह


दुर्योधन ने पांडवों के रहने के लिए पुरोचन नामक शिल्पी से एक भवन का निर्माण करवाया था. यह पूरा महल लाख, चर्बी, सूखी घास आदि से बना था. इस महल को बनवाने में ऐसे चीजों का अधिक प्रयोग किया गया था जो जल्दी आग पकड़ लें. इसके पीछे दुर्योधन की सोच यह थी जब पांडव इस महल में गहरी नींद में सो जाएंगे तो इसमें आग लगा दी जाएगी, जिससे यह महल तुरंत ही जलकर राख हो जाए और किसी को बच निकलने का कोई मौका न मिले.


युधिष्ठिर ने परिवार के साथ महल पहुंचे


दुर्योधन ने पिता को अपनी बातों से मना ही लिया था. इसलिए धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को वाणावृत जाने का आदेश दिया. धृतराष्ट्र के आदेश का पालन करते हुए युधिष्ठिर माता और सभी भाइयों के साथ महल में प्रवेश किया और परिवार के साथ रहने लगे.


विदुर ने खोल दिया सारा राज


दुर्योधन की यह योजना विदुर के कारण विफल हो गई. जब युधिष्ठिर वाणावृत जा रहे थे तो उनकी भेंट तो उन्होंने दुर्योधन के सारे षड्यंत्र के बारे में बता दिया और सर्तक रहने के लिए कहा. विदुर ने युधिष्ठिर को बताया कि दुर्योधन ने ज्वलनशील पदार्थों से महल बनवाया है जो आग लगते ही राख हो जाएगा. इसलिये तुम लोग भवन के अन्दर से वन तक पहुंचने के लिये एक सुरंग बना लेना ताकि संकट आने पर उसका प्रयोग कर सको. मैं सुरंग बनाने वाला कारीगर चुपके से तुम लोगों के पास भेज दूंगा. लेकिन तबतक सावधानी से महल में रहना. युधिष्ठिर ने विदुर को धन्यवाद दिया.


ऐसे बच निकले पांडव


योजना का पता लगने के बाद पांडव अपने बचाव के लिए उपाय करने लगे. सुरंग तैयार हो गई. फिर एक दिन यधिष्ठिर ने भीमसेन से कहा, "भीम! अब दुष्ट पुरोचन को इसी लाक्षागृह में जला कर हम सभी लोगों को यहां से निकल लेना चाहिए." भीम ने उसी रात्रि पुरोचन बन्दी लिया और महल में आग लगा दी. युधिष्ठिर माता कुन्ती और भाइयों के साथ सुरंग के रास्ते सुरक्षित निकल आए. लेकिन जब पांडवों के बच निकलने की जानकारी दुर्योधन को हुई तो उसे अपनी योजना के विफल होने पर बहुत क्रोध आया और पुन: नई योजना की तैयारी करने लगा.


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