Mahabharat: छल करने में माहिर माने जाते हैं स्वर्ग लोक के राजा इंद्र, ऐसे भी मौके आए जब होना पड़ा लज्जित
Mahabharat In Hindi: स्वर्ग लोक के राजा इंद्र छल करने में माहिर माने जाते हैं. छल करने के कारण कई बार ऐसे अवसर भी आए जब देवराज इंद्र को शर्मिंदा होना पड़ा.
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Indian Mythology Stories: देवराज इंद्र के बारे में सभी जानते है. इंद्र को स्वर्ग लोक का राजा कहा जाता है. इंद्र ऐसे देवता हैं जो बहुत जल्द प्रसन्न और क्रोधित हो जाते हैं. इंद्र को छल करने में भी निपुण माना जाता है. छल में निपुण होने के कारण कई बार इंद्र ने स्वर्ग को असुरों से बचाया. इस कारण इंद्र की असुरों से शत्रुता है. इंद्र को कई शक्तियां प्राप्त है.
स्वर्ग से इंद्र का निष्कासन राक्षसों के राजा बलि ने एक बार स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और इंद्र समेत सभी देवताओं को स्वर्ग से भगा दिया. बाद में देवताओं और असुरों के मध्य एक संधि हुई और समुद्र मंथन की प्रक्रिया आरंभ हुई.
इंद्र ने असुरों से छल किया देवताओं और असुरों के मध्य जब समुद्र मंथन शुरू हुआ तो मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए. समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला. अमृल कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच विवाद आरंभ हो गया. जब विवाद अधिक होने लगा तो इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को अमृत से भरा कलश लेकर भाग जाने को कहा. जयंत जब कलश लेकर भागने लगा तो असुर पीछे पीछे भागने लगे. बाद में भगवान विष्णु ने लीला रची और मोहिनी रूप धारण कर असुरों से अमृत प्राप्त कर देवताओं में वितरित किया.
कर्ण के साथ इंद्र ने किया छल महाभारत की कथा में भी इंद्र के छल का वर्णन मिलता है. जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तो कृष्ण जानते थे कि कर्ण के रहते पांडवों की जीत मुमकिन नहीं है. कर्ण के पास सूर्य देव का दिया कवच और कुुंडल था. जिसके रहते कर्ण को पराजित करना असंभव था. तब श्रीकृष्ण ने इंद्र को कर्ण के पास कवच और कुंडल लेने के लिए भेजा. कर्ण एक दानवीर था और हर दिन लोगों को दान दिया करता था. इंद्र इस बात को जानते थे. कवच और कुंडल प्राप्त करने के लिए इंद्र ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और कर्ण के यहां पहुंच गए.
इंद्र वेश बदलकर दान लेने व्यक्तियों की पंक्ति में खड़े हो गए, जब इंद्र की बारी आई तो कर्ण ने उनसे उनकी इच्छा पूछी तो इंद्र बिना समय गंवाए कवच और कुंडल मांग लिए. कर्ण ने बिना सोचे कवच और कुंडल देने का वचन दिया. भंयकर पीड़ा को सहन कर कर्ण ने अपने कवच और कुंडल इंद्र को सौंप दिए. कर्ण को इंद्र के छल का पता न चल सके इसलिए इंद्र कवच और कुंडल लेकर भाग खड़े हुए लेकिन तभी आकाशवाणी हुई. इंद्र घबरा गए और कर्ण के पास जाकर माफी मांगी और दान में दी गई वस्तु के बदले में बराबरी की कोई वस्तु लेने के लिए कहा. लेकिन कर्ण ने कहा कि कर्ण ने दान देने की प्रतिज्ञा ली है दान लेने की नहीं. लेकिन इंद्र ने जिद पकड़ ली और कहा कि नहीं कर्ण कुछ लेना ही पड़ेगा. कर्ण जब नहीं माने तो इंद्र ने कर्ण को अपनी वज्ररूपी शक्ति प्रदान की. इंद्र ने कर्ण से कहा कि इसका एक बार ही प्रयोग कर सकते हैं. यह शस्त्र जिसके ऊपर चलेगा वह बच नहीं पाएगा. इतना कहकर इंद्र वहां से अदृश्य हो गए.
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