Mahabharat Katha: महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया. इसमें बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ. धृतराष्ट्र के सो पुत्रों को जान गंवानी पड़ी. यह युद्ध महात्वाकांक्षाओं और पुत्र मोह के कारण हुआ था. महाभारत की लड़ाई जब निर्णायक मोड़ पर आ गई तो युद्ध के 17 वें दिन ऐसा हुआ जिसकी किसी को कल्पना भी नहीं थी.


कर्ण जब पड़ गए सब पर भरी
कर्ण पांडवों की सेना पर भारी पड़ते जा रहे थे. युद्ध समाप्ति के एक दिन पूर्व रणभूमि पर भंयकर युद्ध लड़ा गया. चारों तरफ रक्त ही रक्त बिखरा हुआ था. लाशों के ढ़ेर लगे हुए थे. कानों को एक ही शोर सुनाई दे रहा था. ये शोर था तलवारों के टकराने का. रणभूमि रक्तपात से तर हो चुकी थी.

युधिष्ठिर जब लड़खड़ाकर जमीन पर गिर गए
पांडव जब कौरवों पर भारी पड़ने लगे तो मोर्चा स्वयं कर्ण ने संभाला. कर्ण ने युधिष्ठिर को ललकारा. इसके बाद कर्ण और युधिष्ठिर के बीच भंयकर युद्ध छिड़ गया. पहले ही बार में कर्ण ने युधिष्ठिर को कई गज दूर फेंक दिया. युधिष्ठिर ने किसी तरह से अपने आप को संभाला और कर्ण पर वार किया. लेकिन कर्ण पर युधिष्ठिर के इस वार का कोई असर नहीं हुआ. इसके बाद कर्ण ने एक के बाद एक वार किए. कर्ण के इन वारों से युधिष्ठिर घबरा गए.


कर्ण लगातार युधिष्ठिर पर भारी पड़ने लगे. कर्ण के हमलों से युधिष्ठिर गंभीर रूप से घायल हो गए. उनके शरीर से रक्त की धारा बहने लगी. इसी बीच कर्ण ने युधिष्ठिर पर एक वार और किया वे जमीन लड़खड़ाकर गिर गए. कर्ण ने युधिष्ठिर को मारने के लिए तलवार को आसमान की तरफ उठाया लेकिन युधिष्ठिर के सीने के पास लाकर कर्ण ने तलवार को रोक लिया. कर्ण के पास युधिष्ठिर को मारने का पूरा मौका था. युधिष्ठिर की कर्ण के हाथों अगर मौत हो जाती तो पांडवों के हाथ से बाजी फिसल जाती और युद्ध का परिणाम पूरी तरह से बदल सकता था. कर्ण ने एक पल कुछ सोचते हुए तलवार को छोड़ दिया और युधिष्ठिर को जीवन दान दे दिया.


कर्ण ने युधिष्ठिर को इसलिए नहीं मारा
कर्ण ने युधिष्ठिर को रणभूमि में इसलिए नहीं मारा क्योंकि वह एक वचन से बंधे हुए थे. युद्ध में युधिष्ठिर पर तलवार चलाने से पहले कर्ण को वही वचन याद आ गया. दरअसल कर्ण ने माता कुंती को यह वचन दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उनके किसी भी पुत्र की जान नहीं लेंगे. यही कारण था कि ना चाहते हुए भी कर्ण ने युधिष्ठिर को जीवित ही जाने दिया.


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