Mahabharat: पांडवों और कौरवों के बीच हुए महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध के नाम से जाना है. इस धर्मयुद्ध में भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की तरफ थे. जबकि गुरु द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे कई महारथी कौरवों की तरफ थे. अब बात यह आती है कि जब गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और भीष्म पितामह जैसे ज्ञानी और ध्यानी महारथी कौरवों की तरफ थे तो कौरवों को अधर्मी क्यों कहा गया और महाभारत के युद्ध में उनकी हार क्यों हुई? आइए जानते हैं कौरवों के अधर्मी और हार के 5 कारणों के बारे में.
कौरवों को अधर्मी कहे जाने के ये हैं 5 कारण:
यह था पहला कारण: भीष्म पितामह के होते भी कौरवों की सेना को अधर्मी इसलिए कहा गया कि भीष्म पितामह ज्ञानी होते हुए भी सत्य / धर्म का साथ न देकर असत्य / अधर्म का साथ दिया था. भरी सभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था तो उस समय भीष्म पितामह विरोध न करके चुप-चाप बैठे थे. भीष्म पितामह दुर्योधन और शकुनि के अनैतिक और छलपूर्ण खेल को जानकर भी उनका विरोध नहीं किया था. अपने ताकत के बल पर जिस तरह से भीष्म ने अंबा, अंबिका और अंबालिका की भावनाओं को कुचल दिया था उनके इस कार्य को भी सही नहीं ठहराया जा सकता.
यह था दूसरा कारण: जब पांडु जंगल चले गए तो उस समय धृतराष्ट्र को सिंहासन दे दिया गया था. ऐसा भी माना जाता है कि गांधारी धृतराष्ट्र से विवाह नहीं करना चाहती थीं लेकिन इस स्थान पर भी भीष्म पितामह ने अपने ताकत के बल पर गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करवा दिया था. यह भी मान्यता है कि गांधारी के लाख समझाने के बावजूद भी धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता और उनके पुत्रों को (शकुनि को छोड़कर) आजीवन कारागार में डाल दिया था.
यह था तीसरा कारण: कौरवों के अधर्मी होने का तीसरा कारण दुर्योधन को माना जाता है. महाभारत का युद्ध केवल दुर्योधन की जिद, अहंकार और लालच का ही परिणाम था. द्यूतक्रीड़ा में पांडवों द्वारा द्रौपदी को हार जाने पर दुर्योधन द्वारा भरी सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र करवाने का कृत्य भी धर्म-विरुद्ध ही था.
यह था चौथा कारण: कौरवों को अधर्मी बनाने का एक कारण दुर्योधन के मामा शकुनि को भी माना जाता है. शकुनि ही ऐसा व्यक्ति था जिसने पांडवों और कौरवों के बीच वैरभाव पैदा किया. शकुनि ने ही दुर्योधन और उसके सभी भाइयों के दिमाग में छल, कपट और अनीति को कूट-कूट कर भर दिया था जिसकी वजह से कौरव अधर्मी हो गए.
यह था पांचवां कारण: महाभारत का युद्ध तय होने के बाद भी श्रीकृष्ण ने युद्ध को टालने का भरसक प्रयास किया था. इसके लिए श्रीकृष्ण पांडवों को केवल 5 गांव देने का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए थे. जिस पर दुर्योधन ने इस प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया था कि ‘युद्ध के बगैर मैं सुई की एक नोंक के बराबर भी जमीन नहीं दूंगा.’
श्रीकृष्ण ने बताया था दुर्योधन को उसकी हार का कारण: श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को मरते वक्त उसकी हार का कारण बताया था. श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को बताया था कि ‘तुम्हारी हार का कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्रहरण करवाना था.’ तब श्रीकृष्ण की बातों को सुनकर दुर्योधन को अपनी गलती का एहसास हुआ था.