Draupadi In Mahabharat: द्रोपदी पंचाल के राजा द्रुपद की पुत्री थीं. इनके बारे में कहा जाता है कि इनका जन्म अग्निकुण्ड से हुआ था. इसलिए इनका नाम यज्ञसेनी भी था. राजा द्रुपद आरंभ से ही अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन से कराना चाहते थे. लेकिन उन्हें जब यह समाचार मिला कि एक दुर्घटना में पांडवों की मृत्यु हो चुकी है तो वे बेहद निराश हुए. राजा द्रुपद अपनी पुत्री का विवाह किसी शूरवीर से ही करना चाहते थे इसलिए उन्होंने द्रोपदी के स्वयंवर का आयोजन किया.


द्रोपदी का स्वयंवर
पांडू पुत्र अर्जुन सर्वश्रेठ धनुर्धारी थे. द्रोपदी के लिए योग्य वर की तलाश के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया. लेकिन शर्त यह थी कि जो भी दरवार के केंद्र में खड़े किए गए खंबे घूमती हुई मछली की आंख को भेदगा उसी से विवाह तय किया जाएगा. मछली पर निशाना नीचे रखे जल से भरे पात्र में देखकर लगाना था. राजा द्रुपद ने स्वयंवर के लिए महान राजाओ और उनके राजकुमारों को आमंत्रित किया था. पांडव उस समय वन में ब्राम्हणों की तरह रहते थे, उनका भेष भी ऐसा था कि कोई उन्हें पहचान न सकें. द्रोपदी के स्वयंवर का समाचार जब पांड्वो को मिला तो वे भी पांचाल नरेश के दरबार में प्रवेश करते हैं. यहां दुर्योधन, कर्ण और श्रीकृष्ण पधारते हैं.


द्रोपदी अपने भाई धृष्टद्युम्न के साथ दरबार में प्रवेश करती हैं. सभी लोग उन्हें देखने लगते हैं. कर्ण भी इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए धनुष उठाते हैं लेकिन द्रोपदी उन्हें यह कहकर रोक देती हैं कि वे एक एक सारथी के बेटे से विवाह नहीं करना चाहती हैं. कर्ण अपमानित महसूस करते हैं और स्वयंवर छोड़ कर चले जाते हैं. इसके बाद अन्य राज कुमार शर्त को पूरा करने के लिए आते हैं लेकिन वे सभी असफल साबित होते हैं. यह देखकर राजा द्रुपद अत्यंत दुखी होते है कि उनकी पुत्री से विवाह करने योग्य कोई भी पराक्रमी पुरुष यहाँ उपस्थित नहीं है. तभी अर्जुन ब्राम्हणों के वेश में वहां पधारते हैं. वहां उपस्थित सभी राजकुमार इस बात का विरोध करते है कि एक ब्राम्हण इस प्रतियोगिता का हिस्सा कैसे बन सकता है. लेकिन अर्जुन के आत्मविश्वास को देखते हुए किसी के कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती है, और आसानी से अर्जुन मछली की आंख भेद देते हैं. इससे द्रोपदी बहुत प्रसन्न होती हैं और वरमाला अर्जुन के गले में डाल देती हैं.


ऐसे बनी पांच पतियों की पत्नी
द्रोपदी पूर्व जन्म में एक ऋषि की पुत्री थीं. सर्वगुण संपन्न पति की इच्छा से उन्होंने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लियाा और भगवान शिव से ऐसे पति की कामना की जिनमें पांच गुण हों. जिस वजह से भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया था कि अगले जन्म में उन्हें 5 पतियों की प्राप्ति होगी और हर एक पति में एक गुण होगा.


द्रोपदी के कई नाम थे
महाभारत में द्रोपदी को कई नामों से संबोधित किया गया है. द्रोपदी पांचाल राज्य की राजकुमारी थीं इसलिए इन्हें पांचाली भी कहा जाता है. इसके अलावा द्रोपदी को दृपदकन्या, सैरंध्री, पर्षती, महाभारती, नित्ययुवनी, मालिनी एवं योजनगंधा के नामों से भी जाना जाता है.


Chanakya Niti: दुश्मन जब शक्तिशाली हो तो ऐसे दें उसे मात, अपनाएं ये रणनीति