Mahabharat story: शिखंडी महाभारत का एक मात्र ऐसा पात्र है जो पुर्नजन्म में स्त्री होता है. दूसरे जन्म में भी वे स्त्री के रूप में जन्म लेते हैं, लेकिन वह पुरूष बन जाते हैं. शिखंडी ने ऐसा क्यों किया और इसके पीछे क्या कारण था. इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए इस कथा को जानना होगा. महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. इस युद्ध में हर दिन विशेष हुआ. जब कौरव और पांडवों में महाभारत का युद्ध होना तय हो गया तो दोनों पक्षों की सेना कुरुक्षेत्र के मैदान में एकत्रित हुईं.
यहां पर कौरवों की सेना का नेतृत्व कर रहे दुर्योधन ने भीष्म पितामह से पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में पूछा. तब भीष्म पितामह ने पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में विस्तार पूर्वक दुर्योधन को बताया. यहीं पर भीष्म ने दुर्योधन को बताया कि वे सभी से युद्ध करेंगे लेकिन सिवाए एक व्यक्ति से वे युद्ध नहीं करेंगे. इस पर दुर्योधन ने उस व्यक्ति का नाम पूछा तो भीष्म ने बताया कि वे राजा द्रुपद के पुत्र शिखंडी से युद्ध नहीं करेंगे. यह उत्तर सुनकर दुर्योधन को हैरानी हुई और इसका कारण पूछा.
भीष्म ने युद्ध न करने के पीछे बताई ये वजह
दुर्योधन के बार बार पूछे जाने पर भीष्म ने उसे बताया कि शिखंडी पूर्व जन्म में एक स्त्री था. साथ ही वह इस जन्म में भी कन्या के रूप में जन्मा था, लेकिन बाद में वह पुरुष बन गया. भीष्म ने कहा कि कन्या रूप में जन्म लेने के कारण मैं उसके साथ युद्ध नहीं करूंगा. क्योंकि उनका धर्म महिलाओं पर शस्त्र उठाने की आज्ञा नहीं देता है.
शिखंडी के पूर्व जन्म की कथा
दुर्योधन ने भीष्म की बात सुनकर शिखंडी के स्त्री से पुरूष बनने की कथा के बारे में जानने की इच्छा जताई, तब भीष्म ने बताया कि जिस समय हस्तिनापुर के राजा और उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य थे. उस समय उनके विवाह के लिए मैं भरी सभा से काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को हर लाया था. लेकिन जब पता चला कि अंबा राजा शाल्व को प्यार करती है. तब अंबा को पूरे सम्मान के साथ राजा शाल्व के पास भेज दिया, लेकिन राजा शाल्व ने अंबा को अपनाने से इंकार कर दिया.
अंबा ने भीष्म से बदला लेने की ठानी
इस पूरी घटना के बाद अंबा को ऐसा लगता है कि राजा द्वारा उससे न अपनाने की पीछे सबसे बड़ी वजह भीष्म हैं. भीष्म के कारण ही उनका जीवन बरबाद हुआ है. इसलिए अंबा ने भीष्म से बदला लेने का प्रण लिया. यह बात जब अंबा के नाना राजर्षि होत्रवाहन को पता चली तो उन्होंने अंबा को परशुरामजी से मिलने के लिए कहा. अंबा ने अपने साथ हुई घटना की पूरी जानकारी परशुराम को बताई. तब परशुरामजी ने भीष्म से अंबा से विवाह करने के लिए कहा लेकिन भीष्म ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. इस पर परशुराम जी को क्रोध आ जाता है और भीष्म को युद्ध के ललकारते हैं. दोनों के बीच पूरे 23 दिन तक युद्ध चलता है और परिणाम नहीं निकलता है. 24 वें दिन भीष्म ने महाभयंकर प्रस्वापास्त्र अस्त्र का प्रहार परशुरामजी पर करना चाहा तो आकाश में उपस्थित नारद मुनि ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया. तब भीष्म ने तीर को धनुष पर से उतार लिया. तब परशुरामजी ने पराजय को स्वीकार कर लिया. युद्ध समाप्त होने के बाद अंबा भीष्म के सर्वनाश के लिए युमना किनारे तप करने लगी. तप करते-करते उसने अपना शरीर त्याग दिया.
अंबा ने कन्या के रूप में लिया जन्म
अंबा ने अगले जन्म में वत्सदेश के राजा के यहां कन्या के रूप में जन्म लिया. अंबा अपने पूर्वजन्म के बारे में जानती थी. इसलिए भीष्म से बदला लेने के लिए वह पुन: तप करना शुरू कर देती है. इस बार उसके तप से भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहते हैं. तब अंबा भीष्म की पराजय का वरदान मांगती है. भगवान शिव उसे मनचाहा वरदान देते हैं लकिन वह कहती है कि प्रभु कन्या होकर भीष्म को कैसे पराजित कर सकती है. इस पर भगवान शिव कहते हैं कि अंबा तुम अगले जन्म में पुन: एक स्त्री के रूप में जन्म लोगी, लेकिन युवा होने पर तू पुरुष बन जाएगी और भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी. ऐसा वरदान मिलने पर उस कन्या ने एक चिता बनाई और भीष्म का वध करने के लिए अग्नि में प्रवेश कर गई.
अंबा ही थी शिखंडी
अंबा महाभारत काल में शिखंडी रूप में पैदा हुई. राजा द्रुपद को कोई संतान नहीं थी, तब महादेव को प्रसन्न कर उन्होंने पुत्ररत्न का वरदान मांगा. तब महादेव ने राजा से कहा कि तुम्हारे यहां एक कन्या का जन्म होगा, जो बाद में पुरुष बन जाएगी. समय आने पर द्रुपद की पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया. भगवान शिव के वरदान का स्मरण करते हुए द्रुपद ने सभी को यही बताया कि उनके यहां पुत्र का जन्म हुआ है. युवा होने पर रानी ने राजा द्रुपद से कहा कि महादेव का वरदान कभी निष्फल नहीं हो सकता. इसलिए अब इसका विवाह किसी कन्या से कर देना चाहिए. रानी की बात मानकर राजा द्रुपद ने दशार्णराज हिरण्यवर्मा की कन्या से शिखंडी का विवाह करवा दिया.
जब शिखंडी का खुल गया राज
जब हिरण्यवर्मा की पुत्री को पता चला कि उसका विवाह एक स्त्री से हुआ है, तो यह बात पिता को बताई. यह बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा को बहुत क्रोध आया और उसने राजा द्रुपद को संदेश भिजवाया कि यदि यह बात सत्य हुई तो मैं तुम्हारे कुटुंब और राज्य सहित सभी को नष्ट कर दूंगा. राजा द्रुपद ने राजा हिरण्यवर्मा को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसने अपने साथी राजाओं के साथ मिलकर पांचालदेश पर आक्रमण कर दिया. शिखंडी को जब आक्रमण की बात पता चली तो वह बहुत घबरा गई और अपने प्राण त्यागने की इच्छा से वन कूच कर गई. वन की रक्षा स्थूणाकर्ण नाम का एक यक्ष करता था. यक्ष ने जब शिखंडी को देखा तो उससे यहां आने का कारण पूछा.
तब शिखंडी ने उसे पूरी बात सच-सच बता दी. पूरी बात जानने के बाद उस यक्ष ने शिखंडी की सहायता करने के उद्देश्य से अपना पुरुषत्व उसे दे दिया और उसका स्त्रीत्व स्वयं धारण कर लिया. यक्ष ने शिखंडी से कहा कि जब कार्य पूर्ण हो जाए तो मेरा पुरुषत्व मुझे पुन: लौटा देना. शिखंडी ने उसे ऐसा ही करने का वचन दे दिया और अपने नगर लौट आया. शिखंडी को पुरुष रूप में देखकर राजा द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए. राजा हिरण्यवर्मा ने भी शिखंडी के पुरुष रूप की परीक्षा ली और शिखंडी को पुरुष जानकर वह बहुत प्रसन्न हुआ.
शिखंडी की ऐसे हुई मौत
उधर एक दिन यक्षराज कुबेर घूमते-घूमते स्थूणाकर्ण के पास पहुंचे. लेकिन वह यक्ष उनका अभिवादन करना भूल गया. तब कुबेर ने अन्य यक्षों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात यक्षराज को बता दी और कहा कि इस समय स्थूणाकर्ण स्त्री रूप में है. इसलिए संकोचवश वह आपके सामने नहीं आ रहा है. पूरी बात जानकर यक्षराज कुबेर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने स्थूणाकर्ण को श्राप दिया कि अब उसे इसी रूप में रहना होगा. स्थूणाकर्ण के क्षमा मांगने पर यक्षराज ने कहा कि शिखंडी की मृत्यु के बाद तुम्हें तुम्हारा पुरुष रूप पुन: मिल जाएगा. उधर जब शिखंडी का कार्य सिद्ध हो गया तो वह वन में स्थूणाकर्ण के पास पहुंचा. तब स्थूणाकर्ण ने शिखंडी को पूरी बात बता दी। यह जानकर शिखंडी को बहुत प्रसन्नता हुई. महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब दुर्योधन ने मरणासन्न अवस्था में अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया था, तब महादेव की तलवार से अश्वत्थामा ने सोती हुई अवस्था में शिखंडी का वध कर दिया था.
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