Mahabharat In Hindi: महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था. महाभारत युद्ध सबसे विनाशकारी युद्ध माना जाता है. महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पूर्व राजा धृतराष्ट्र ने विदुर से इस युद्ध को लेकर उनके विचार जानने चाहे, तब विदुर ने कहा था कि महाभारत का युद्ध सबसे विनाशकारी साबित होगा. अंत में विदुर की महाभारत के युद्ध को लेकर की गई भविष्यवाणी सच साबित हुई.
महाभारत युद्ध इस कारण हुआ
महाभारत का युद्ध धतृराष्ट्र के पुत्र मोह और दुर्योधन की महत्वाकांक्षाओं का परिणाम था. दुर्योधन अधर्म के साथ था, जबकि कुंती पुत्र युधिष्ठिर धर्म के साथ थे. नतीजा ये हुआ कि इस युद्ध में दुर्योधन के साथ कौरव वंश का नाश हो गया. महाभारत के युद्ध में राजा धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र कुरुक्षेत्र में लड़ते लड़ते मर गए.
पुत्रों का शव देख गांधारी को आया क्रोध
महाभारत का विनाशकारी युद्ध जब समाप्त हुआ तो गांधारी के सभी 100 पुत्रों के शव महल के परिसर में लाए गए. जब महल के परिसर में 100 पुत्रों को एक पंक्ति में सफेद वस्त्र में लिपटा देखा तो गांधारी को भारी दुख हुआ है. वे वहीं विलाप करने लगीं. इसी बीच वहां पर श्रीकृष्ण आ गए. भगवान श्रीकृष्ण गांधारी का बहुत आदर और सम्मान करते थे. श्रीकृष्ण शोक व्यक्त करने के उद्देश्य से जब गांधारी के पास पहुंचे तो, श्रीकृष्ण को देख गांधारी को क्रोध आ गया. विलाप कर रही गांधारी ने रोते रोते ही श्रीकृष्ण से कहा कि ये सब तुम्हारा ही किया हुआ है. गांधारी ने श्रीकृष्ण से कहा कि श्रीकृष्ण यदि तुम चाहते तो इस युद्ध को टाला जा सकता था, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया. गांधारी ने श्रीकृष्ण से कहा, इस कृत्य के लिए तुम्हें कभी माफी नहीं करूंगी. श्रीकृष्ण दोनों हाथों को जोड़कर गांधारी के सभी बातों को धैर्य पूर्वक सुनते रहे.
गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया
क्रोधित गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को शाप दिया कि श्रीकृष्ण जिस तरह से मेरे वंश का नाश हुआ है, उसी प्रकार से तुम्हारा वंश भी आपस में लड़ते हुए नष्ट हो जाए. श्रीकृष्ण ने गांधारी से कहा कि यदि इस श्राप को देने से आपके मन को शांति मिलती है तो ऐसा ही होगा. गांधारी को प्रणाम कर, श्रीकृष्ण वहां से चले आए और द्वारिका आकर रहने लगे.
द्वारिका समुद्र में समा गई
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के 36 वर्ष बाद गांधारी के श्राप का असर आरंभ हो गया. अभिशाप के कारण द्वारिका में अपशकुन शुरू हो गए. एक दिन द्वारिका में कुछ ऋषि मुनि आए जिनका यदुवंशी बालकों ने अपमान कर दिया. इसके बाद शाप का प्रभाव और तेजी से बढ़ने लगा. एक दिन सभी ने एक ऐसा पेय पदार्थ पी लिया जिससे वे आपस में एक दूसरे को मारने लगे. इस घटना में भगवान श्रीकृष्ण और कुछ अन्य लोग ही जीवित बच सके. एक अन्य कथा के अनुसार एक गृहयुद्ध में सभी यादव प्रमुखों की मृत्यु हो गई. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका छोड़ दी. भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि शाप को पूरा करने का समय आ गया है और एक शिकारी का तीर लगने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी देह त्याग दी. इसके बाद द्वारिका भी सागर में डूबी गई.