Mahabharat In Hindi: कंस जब अपनी बहन देवकी को विदा कराने जा रहा था तब एक आकाशवाणी हुई थी. इस आकाशवाणी में कहा गया था कि कंस देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान तेरा वध करेगी. कंस इस आकाशवाणी को सुनकर बुरी तरह से भयभीत हो गया और देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद कर दिया. कंस ने दोनों को इस शर्त पर जीवित रखा कि जो भी संतान होगी उसे वे कंस को सौंप देंगे ताकि वो उसको मार सके.
वासुदेव और देवकी ने ऐसा ही किया. जब भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया तो उन्होंने वासुदेव जी से कहा कि वे उन्हें वृंदावन में नंदबाबा के यहां छोड़ आएं और उनके यहां जो कन्या जन्मी है उसे लाकर कंस को सौंप दें. वासुदेव ने ऐसा ही किया. कंस ने जब इस कन्या को मारने के लिए हाथों को उठाया तो कन्या गायब हो गई. तभी पुन: आकाशवाणी हुई कि जिसे वह मारना चाहता है उसने तो गोकुल पहुंच चुका है.
पूतना राक्षसी को कंस ने दी ये जिम्मेदारी
भगवान श्रीकृष्ण का भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में रात्रि 12 बजे हुआ था. कंस को मारने वाला वृंदावन पहुंच चुका है. इस बात से वह इतना भयभीत हो गया कि उसने भद्रापद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन जन्म लेने वाले सभी बच्चों को मारने के लिए पूतना को वृंदावन भेजा.
पूतना कौन थी
पूतना पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री थी जो एक राजकन्या थी. पिछले जन्म में पूतना का नाम रत्नमाला था. एक कथा के अनुसार एक दिन राजा बलि के यहां एक वामन पाधरे. भगवान वामन की सुंदर और मनमोहक छवि देखकर रत्नमाला के मन में ममत्व जाग उठा. भगवान वामन को देखकर वह मन ही मन सोचने लगी कि मेरा भी ऐसा ही पुत्र हो ताकि वह उसे हृदय से लगाकर दुग्धपान कराती बहुत दुलार करती. भगवान ने उसकी मन की इच्छा को जान लिया और तथास्तु कहा. लेकिन इसके बाद भगवान ने राजा बलि का अहंकार दूर करने के लिए तीन पग में भूमि नाप दी. राजा समझ गए और अपनी गलती का उन्हे अहसास हो गया. राजा ने वामनदेव से क्षमा मांगी. लेकिन इस घटना को रत्नमाला दूर से देख रही थीं. रत्नमाला को प्रतीत हुआ कि उसके पिता का घोर अपमान हुआ है. इससे वह बुरी तरह से क्रोधिध हो उठी. उसने मन ही मन भगवान को बुरा कहना आरंभ कर दिया उसने कहा कि अगर ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं इसे विष दे देती. भगवान ने उसके इस भाव को भी जानकर तथास्तु कह दिया.
रत्नमाला अगले जन्म में बनी पूतना
अगले जन्म में भगवान द्वारा तथास्तु कहने के कारण पूतना राक्षसी के रूप में उसने जन्म लिया. पूतना कंस की सबसे विश्वासपात्र दासी थी. कंस ने अष्टमी की तिथि के दिन जन्म लेने वाले सभी बच्चों को मारने का आदेश दिया. आदेश मिलने के बाद पूतना गोकूल पहुंच गई. पूतना भेष बदलने में माहिर थी. उसने सुंदर स्त्री का भेष धारण किया और भगवान कृष्ण को दुग्धपान करने लगी, भगवान ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया. इस प्रकार से भगवान के हाथों पूतना को वध हुआ और जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर दिया. वहीं पूतना की दुग्ध और विष पिलाने की इच्छा को भी पूर्ण किया.
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