Mahabharat Katha: कौरव और पांडवों की आपस में शत्रुता थी लेकिन इसके बाद भी एक बार अर्जुन ने दुर्योधन की जान बचाई थी. इसकी एक रोचक कथा है. महाभारत की कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध प्रारंभ होेने से पूर्व पांडव वनवास में रह रहे थे. जहां पर पांडव निवास स्थान बनाकर रह रहे थे उसके पास ही एक सरोवर था. इस सरोवर के पास ही दुर्योधन भी अपना शिविर बनाकर रहता था. एक दिन जब दुर्योधन इस सरोवर से स्नान करके निकला तो वहां अचानक स्वर्ग से गंधर्व प्रकट हो गए. गंधर्व और दुर्योधन में किसी बात को लेकर विवाद आरंभ हो गया, विवाद ने युद्ध का रूप ले लिया.


दुर्योधन को गंधर्व में युद्ध बंदी बना लेते हैं
दुर्योधन और गंधर्व के बीच भयंकर युद्ध छिड़ जाता है. युद्ध में दुर्योधन परास्त हो जाता हैं और गंधर्व दुर्योधन को बंदी बना लेते हैं. तभी वहां अचानक अर्जुन आ जाते हैं और गंधर्व से युद्ध आरंभ कर देते हैं. अर्जुन गंधर्व को युद्ध में पराजित कर देते हैं और दुर्योधन को मुक्त करा लेते हैं. यह देखकर दुर्योधन लज्जित होता है और अर्जुन का आभार व्यक्त करते हुए वरदान मांगने को कहता है. लेकिन अर्जुन कहते हैं कि वे समय आने पर अवश्य ही कोई वरदान मांग लेंगे. इसके बाद अर्जुन वहां से चले जाते हैं.


भीष्म पितामह के पांच स्वर्ण तीर
महाभारत का युद्ध जब आरंभ होता है तो युद्ध में पांडव कौरवों पर भारी पड़ने लगते हैं. तब भीष्म पितामह पांच स्वर्ण तीरों को अभिमंत्रित करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण को जब यह बात ज्ञात होती है तो वे इन तीरों को हासिल करने के लिए योजना बनाने लगते हैं, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि युद्ध में इन तीरों का प्रयोग हुआ तो पांडवों की हार सुनिश्चित है.


श्रीकृष्ण अर्जुन को दुर्योधन का वरदान याद दिलाते हैं
श्रीकृष्ण ने तीर प्राप्त करने के लिए तब अर्जुन को दुर्योधन के वरदान की याद दिलाई और अर्जुन से दुर्योधन से अपना वरदान मांगने के लिए भेजा. वरदान में श्रीकृष्ण से अर्जुन से इन पांच तीरों को मांगने के लिए कहा. श्रीकृष्ण की बात को सुनकर अर्जुन दुर्योधन के पास जाते हैं और दुर्योधन को वरदान की याद दिलाते हैं.


दुर्योधन अर्जुन को सौंप देता है तीर
दुर्योधन ने अर्जुन से वरदान मांगने के लिए कहा. अर्जुन ने वहीं पांच तीर वरदान में देने के लिए कहे. दुर्योधन यह सुनकर कुछ समय के लिए हैरत में पड़ गया लेकिन वह वचन से बंधा तो उसने वे तीर अर्जुन को सौंप दिए. तीर प्राप्त होने से पांडवों का संकट टल गया. उधर दुर्योधन भीष्म पितामह से फिर से तीरों को अभिमंत्रित करने के लिए कहता है, लेकिन वे इंकार कर देते हैं कि अब वे दोबारा ऐसा नहीं कर सकते हैं.


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