Solar Eclipse Mahabharat story: सूर्य ग्रहण का महाभारत के युद्ध से गहरा संबंध है. महाभारत के युद्ध में सूर्य ग्रहण का जिक्र आता है. सूर्य ग्रहण का वर्णन वेदों में भी आता है. महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था. कहा जाता है कि युद्ध के दौरान पूर्णिमा और संभावित पूर्ण सूर्य ग्रहण के बीच 13 दिनों का ही अंतर था. श्रीकृष्ण को ग्रहों और ग्रहण का पूर्ण ज्ञान था जिसके वजह से ही उन्होंने अपने परम मित्र अर्जुन की जान बचाई थी. इसकी कथा इस प्रकार है.


पांडवों से जब कौरव हराने लगे
महाभारत के युद्ध में कौरवों पर जब पांडवों की सेना भारी पड़ने लगी तो कौरवों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया. अर्जुन संपूर्ण कौरवों की सेना पर काल बनकर टूट रहे थे उनके वाणों की वर्षा के आगे सभी शूरवीर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पा रहे थे. इससे दुर्योधन बहुत क्रोधित हो उठा और उसने भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य पर आरोप लगाए कि आप लोग पूरे मनोयोग से पांडवों से युद्ध नहीं कर रहे हैं क्योंकि आप लोग उनके प्रति स्नेह रखते हैं. इस पर भीष्म और द्रोणाचार्य को बहुत खराब लगा. तब कौरवों ने युद्ध की रण्नीति में बदलाव किया.


कौरवों ने रची चक्रव्यूह की रचना
अर्जुन को रोकने और युधिष्ठिर को बंदी बनाने के कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की. इसके लिए पहले यह तय किया गया कि किसी प्रकार से अर्जुन को युद्धभूमि से दूर किया जाए. ऐसा करते ही युधिष्ठिर को बंदी बना लिया जाएगा और कौरव युद्ध में जीत जाएंगे. अर्जुन को रोकने में कौरवों ने सफलता हासिल कर ली और दूसरी तरफ युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए व्यूह रचा गया. इस व्यूह को तोड़न आसान नहीं था क्योंकि इसमें छह द्वार थे. जिन्हे तोड़कर बाहर निकलना था. तब पांडवों की तरफ से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को इसके लिए युद्ध में उतारा गया. अभिमन्यु ने चक्रव्यूह के सभी दरवाजों को तोड़ना प्रारंभ कर दिया लेकिन अंतिम यानि छठवे दरवाजे पर कौरवों की सेना ने अभिमन्यु को घेर लिया. तब सिंधु प्रदेश के राजा और दुर्योधन के जीजा जयद्रथ ने पीछे से अभिमन्यु पर वार किया जिससे बाद मौका पर सभी कौरवों ने मिलकर अभिमन्यु की हत्या कर दी.


जयद्रथ का वध करने की अर्जुन ली प्रतीज्ञा
अभिमन्यु के वीरगति को प्राप्त होने की सूचना जब अर्जुन को मिली तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने प्रतीज्ञा ली की अगले दिन शाम ढ़लने से पूर्व यदि उन्होने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वे आत्मदाह कर लेंगे. अर्जुन की इस प्रतीज्ञा की खबर जब कौरवों तक पहुंची तो जयद्रथ डर से कांपने लगा और अगले दिन युद्ध में जाने से इंकार करने लगा. तब कौरवों ने जयद्रथ को समझाया कि कुछ नहीं होगा और पूरी सेना तुम्हारी सुरक्षा में रहेगी. सभी के समझाने पर जयद्रथ युद्ध में आने के लिए तैयार हो गया.


अगले दिन युद्ध आरंभ हुआ. अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि आप मुझे उधर ले चलें जहां जयद्रथ है. अर्जुन क्रोध और बदले की अग्नि में जल रहे थे. उन्हें जयद्रथ के सिवा कुछ भी नहीं सूझ रहा था. भगवान ने अर्जुन का रथ जयद्रथ की तरफ मोड दिया. लेकिन कौरवों ने उनके रथ को आगे बढ़ने से रोक दिया. कई तरह की बाधाएं खड़ी कर दी. अर्जुन ने आगे निकलने का बहुत प्रयास किया लेकिन कौरवों ने उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया. उधर सूर्य अपनी गति से चल रहा था. समय तेजी से बीत रहा था. अर्जुन की चिंता बढ़ती जा रही थी, समय जैसे जैसे बीत रहा था अर्जुन की तनाव भी बढ़ने लगा. निराशा उन्हें घेरने लगी.


श्रीकृष्ण ने ऐसी बचाई अर्जुन की जान
अर्जुन की हालात को देखकर श्रीकृष्ण समझ गए कि ऐसी स्थिति में अर्जुन जयद्रथ का वध नहीं कर पाएंगे. उधर प्रतीज्ञा के मुताबिक आत्मदाह के लिए चिता सजाने की तैयारी शुरू होने लगी. तभी भगवान कृष्ण ने अपनी शक्ति से सूर्य को ढ़क दिया. जयद्रथ और कौरव ये समझने लगे की कि अब शाम हो गई है. सूर्य ढल चुका है. अर्जुन को अब अपनी प्रतीज्ञा के अनुसार आत्मदाह करना होगा. अर्जुन की मौत की कल्पना करते हुए कौरव अत्यंत खुश होने लगे उन्हें लग रहा था कि अर्जुन के देह त्यागते ही वे युद्ध जीत जाएंगे.


उधर अर्जुन आत्मदाह के लिए चिता की तरफ बढ़ने लगे. अर्जुन गांडीव को एक तरफ रखने लगे तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि योद्घा को निराश नहीं होना चाहिए और सदैव ही अपने शस्त्र को थामे रहना चाहिए. निराश अर्जुन ने उनकी ये बात मान ली. दूसरी तरफ अति उत्साह में जयद्रथ अर्जुन के सामने आ गया और आत्मदाह करने के लिए कहने लगा. अर्जुन ने उसके इस व्यवहार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और बुझे मन से चिता की तरफ बढ़ने लगे. जयद्रथ खुशी से नचने लगा. तभी श्रीकृष्ण ने आसमान में सूर्य चमकने का इशारा किया. अचानक सूर्य देव चमकने लगे. कौरव यह देखकर घबरा गए और सूर्य निकलते ही जयद्रथ भागने लगा.


तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि देख क्या रहे हो अर्जुन गांडीव उठाओ और अपनी प्रतीज्ञा को पूरा करो देखो सूरज डूबा नहीं है. इतना सुनते ही अर्जुन ने गांडीव पर तीर चलाया और जयद्रथ का वध कर दिया. तीर लगते ही जयद्रथ का सिर उसके पिता की गोद में जा गिरा. जयद्रथ के पिता ने पुत्र का सिर गोद में देखा तो भयभीत हो गया. पिता की गोद से जयद्रथ का सिर भूमि पर गिरते ही दोनों के सिर में धमाका हुआ और जयद्रथ परलोक चला गया. इस प्रकार सूर्य ग्रहण के कारण अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हुई.


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