Mahabharat story:  महाभारत की कथा भगवान श्रीकृष्ण के बिना अधूरी है. श्रीकृष्ण महाभारत के सबसे मजबूत पात्र के रूप में नजर आते हैं जो कौरवों और पांडवों के बीच एक सेतु की तरह नजर आते हैं लेकिन जब बात धर्म और अर्धम की आती है तो श्रीकृष्ण धर्म का रास्ता चुनते हुए पांडवों का साथ देते हैं. पांडवों के अधिकारों का हनन किया गया था उनका शोषण और उनके खिलाफ अनगिनत षड्यंत्र कौरवों द्वारा रचे गए थे. बावजूद इसके पांडवों ने धर्म और न्याय का मार्ग नहीं छोड़ा और इसीकारण महाभारत के युद्ध में पांडवों को श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन मिला. जिसकी वजह से महाभारत के युद्ध में पांडवों का विजय प्राप्त हुई.


महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण द्वारका आकर रहने लगे. रुक्मिणी को श्रीकृष्ण की पत्नी के रूप में अधिक जाना जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. भगवान श्रीकृष्ण की रुक्मिणी के अतिरिक्त सात अन्य पत्नियां भी थीं. जिनके नाम इस प्रकार थे.


जाम्बवती: जाम्बवंती जाम्बवंत जी की बेटी थीं. एक बार एक मणि को लेकर श्रीकृष्ण और जाम्बवंतजी के बीच भयंकर युद्ध हुआ. ये युद्ध 28 दिन तक चला. जब जाम्बवत हारने लगे तब उन्होंने श्रीकृष्ण को ध्यान से देखा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि जिनसे वे युद्ध कर रहे हैं वे कोई नहीं बल्कि स्वयं उनके प्रभु श्रीराम हैं. तब उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ. उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे. तब उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें पुत्री से विवाह करना होगा. जाम्बवंती इस तरह से श्रीकृष्ण की पत्नी बनीं.


सत्यभामा: पौराणिक कथाओं के अनुसार सत्यभामा पहले जन्म में सुधर्मा नाम के ब्राह्मण की पुत्री थी. जिसका विवाह चंद्र नाम के एक युवक से हुआ था. एक बार सुधर्मा अपने दामाद चंद्र के साथ जंगल में गए जहां पर एक राक्षस ने दोनों का वध कर दिया. इससे गुणवती को बहुत दुख हुआ. दरिद्रता के कारण घर का सामान बेचकर पिता-पति का अंतिम संस्कार करना पड़ा. उसके बाद जीवन निर्वाह का साधन मिलने पर गुणवती ने स्वयं को भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित कर दिया और बाद में श्रीकृष्ण को पति के रूप में प्राप्त किया. भगवान कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से ही नरकासुर नामक राक्षस का संहार किया था।


कालिंदी: दुर्योधन और शकुनि द्वारा बनाए लाक्षागृह से सकुशल बच निकलने के बाद पांडवों से श्रीकृष्ण ने इंद्रप्रस्थ में मुलाकात की. युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी और कुंती ने उनका बहुत ही आदर सम्मान किया और कुछ दिन पांडवों के साथ रहे. इस प्रवास के दौरान एक दिन अर्जुन को साथ लेकर भगवान कृष्ण वन विहार को निकले. वहां उन्होंने देखा कि सूर्य पुत्री कालिन्दी, श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की कामना लेकर तपस्या कर रही थी. कालिन्दी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण ने उसके साथ विवाह कर लिया. कालिन्दी खांडव वन में रहती थी। यहीं पर पांडवों का इंद्रप्रस्थ बना था.


मित्रविन्दा: एक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण और मित्रविन्दा में पहले से ही प्रेम था. एक दिन श्रीकृष्ण को खबर मिली कि दुर्योधन मित्रविन्दा से बलपूर्वक विवाह करना चाहता है. इस पर श्रीकृष्ण ने भरी सभा से मित्रवन्दा का हरण किया और विन्द तथा अनुविन्द को पराजित कर मित्रविन्दा को द्वारिका ले गए. जहां वहां उन्होंने विधिवत रूप से मित्रविन्दा से विवाह किया.


लक्ष्मणा: श्रीकृष्ण को लक्ष्मणा को प्राप्त करने के लिए कठिन स्वयंकर जीतना पड़ा था. भगवान श्रीकृष्ण स्वयं में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, लेकिन यह बात लोगों को पता चली जब उन्होंने लक्ष्मणा को प्राप्त करने के लिए स्वयंवर की धनुष प्रतियोगिता में भाग लिया. इस प्रतियोगिता में कर्ण, अर्जुन और अन्य कई सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों ने भाग लिया था. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने सभी धनुर्धरों को पीछे छोड़ते हुए लक्ष्मणा से विवाह किया. लक्ष्मणा पहले से ही श्रीकृष्ण के अपना पति मान चुकी थी इसीलिए श्रीकृष्ण को इस प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा.


सत्या: सत्या कोसलदेश के राजा थे नग्नजित की पुत्री थीं. इसलिए उन्हें नाग्नजिती भी कहा जाता है. एक बार कुछ राजाओं ने श्रीकृष्ण को घेर लिया और उन पर हमला बोल दिया उस समय वहां पर सत्या भी मौजूद थीं. इन राजाओं ने श्रीकृष्ण पर तीरों से वर्षा शुरू कर दी तब अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण की मदद के लिए वहां पर आए सभी को खदेड़ दिया. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सत्या को अपने साथ द्वारका ले आए.


भद्रा: कृष्ण का कैकेय की राजकुमारी भद्रा से भी विवाह हुआ था. जिनसे संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक नाम के पुत्र हुए.


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