Mahabharat: सूर्य पुत्र कर्ण से कुंती को आखिर क्यों करनी पड़ी थी विनती, जानें
Mahabharat Story: 16 जुलाई को सूर्य संक्रांति है. सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश कर रहे हैं. इसे कर्क संक्रांति भी कहा जाता है. महाभारत में सूर्य का संबंध कर्ण से बताया गया है. कर्ण को सूर्य पुत्र माना गया है. आइए जानते हैं कर्ण के बारे में.
Mahabharat Katha: महाभारत के सबसे प्रभावशाली पात्रों में एक नाम कर्ण का भी आता है. कौरवों की तरफ से पांडवों के विरूद्ध युद्ध करने के बाद भी कर्ण का सम्मान कम नहीं होता है. महाभारत में कर्ण अपनी प्रतिभा और गुणों के आधार पर एक श्रेष्ठ व्यक्ति के तौर पर उभरकर आते हैं. प्रतिभाशाली और शक्तिशाली होने के बाद भी कर्ण को कई अवसरों पर अपमान सहन करना पड़ा. कर्ण की शक्ति को भगवान श्रीकृष्ण अच्छी तरह से जानते थे. वे यह भी जानते थे कि यदि कर्ण पर काबू न पाया गया तो महाभारत के युद्ध में पांडव पराजित हो सकते हैं.
कुंती ने की कर्ण से विनती कर्ण जानते थे कि कुंती ही उनकी माता हैं. इस कारण कर्ण के मन में सदैव मां के लिए आदर था. इस बात को कुंती भी जानती थीं. महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले कुंती कर्ण से मिलने जाती हैं और कर्ण से कहती हैं कि वे पांडवों की तरफ ये युद्ध करें. कुंती कर्ण कई बार कहती हैं कि लेकिन कर्ण साफ इंकार कर देते हैं. वे कहते हैं कि वह दुर्योधन के साथ विश्वासघात नहीं कर सकते हैं. तब कुंती कर्ण से एक वचन लेती हैं और कर्ण से कहती हैं कि तुम अपने भाइयों का वध नहीं करोगे. इस पर कर्ण माता कुंती को वचन देते हैं कि मां आपके आर्शीवाद से आज तक कर्ण के यहां से खाली हाथ नहीं गया है और फिर आप तो मेरी मां है, इसलिए में वचन देता हूं कि अर्जुन के अतिरिक्त किसी पर भी अस्त्र- शस्त्र का प्रयोग नहीं करुंगा.
इंद्र ने कर्ण के साथ किया छल कर्ण सूर्य पुत्र थे. इसीलिए कर्ण को सूर्य का अशांवतार भी कहा जाता है. सूर्य पुत्र होने के कारण कर्ण के पास सूर्य के दिए हुए कवच और कुुंडल थे. जिनके रहते कर्ण को कोई भी मार नहीं सकता था. महाभारत के युद्ध में कर्ण दुर्योधन की तरफ थे. भगवान कृष्ण जानते थे कि कर्ण के रहते पांडव कभी कौरवों से नहीं जीत सकते हैं. इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण के कवच और कुंडल प्राप्त करने की एक योजना बनाई. इसके लिए इंद्र को भेष बदलकर कर्ण के पास भेज दिया. कर्ण वीर होने के साथ साथ दानवीर भी थे. कर्ण के द्वार से कोई भी व्यक्ति खाली नहीं जाता था. इंद्र को साधु के भेष में देखकर कर्ण ने उनसे उनकी इच्छा पूछी. तब इंद्र ने कर्ण से दान मांगने से पहले वचन मांगा. कर्ण ने भी वचन दे दिया कि जो मांगोगे वह दान में दिया जाएगा. वचन मिलते ही इंद्र ने कर्ण से कवच और कुंडल दान में मांग लिए. इस बात को सुनकर कर्ण विचलित नहीं हुए और एक पल में ही असहनीय दर्द को सहते हुए अपने शरीर से कवच और कुंडल निकालकर इंद्र को सौंप दिए.
कवच और कुंडल लेकर इन्द्र भागने लगे कवच और कुंडल लेकर इंद्र जब भागने लगे तो थोड़ी दूर चलने के बाद ही उनका रथ जमीन में धंस गया और तभी आकाशवाणी हुई कि इंद्र तुमने ये बहुत बड़ा पाप किया है. कर्ण के साथ छल किया है. यह रथ अब आगे नहीं बढ़ेगा और तुमको भी इसकी सजा मिलेगी. इतना सुनते ही इंद्र भयभीत हो गए. इंद्र ने हाथ जोड़कर विनती की और इससे बचने का उपाय पूछा. तभी फिर आकाशवाणी हुई कि यदि पाप से बचना चाहते है तो दान में दी गई वस्तु के बदले में बराबर की ही कोई वस्तु देना होगी.
भयभीत इंद्र ने तत्काल इस बात को स्वीकार कर लिया. तब इंद्र फिर से कर्ण के पास गए. लेकिन इस बार ब्राह्मण के वेश में नहीं. कर्ण ने उन्हें आता देखकर बड़ी विनम्रता से पूछा देवराज आदेश करिए और क्या चाहिए. इस बात से इंद्र ने अपने आप को बहुत लज्जित महसूस किया और आकाशवाणी के बारे में बताया और अपनी वज्र रूपी शक्ति कर्ण को प्रदान की. इंद्र ने कर्ण को बताया कि इसके प्रहार से कोई भी जीवित नहीं बच सकेगा, लेकिन इसे एक बार ही प्रयोग में लाया जा सकेगा. इतना कहकर इंद्र वहां से वापिस आ गए.