Bhagavad Gita Path Niyam and Importance: श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है. गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जो सभी महत्वपूर्ण है. महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए थे, वही गीता है. गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति, कर्म, जीवन आदि का वृहद रूप से वर्णन किया गया है.


गीता से हमें यह ज्ञान मिलता है कि व्यक्ति को केवल अपने काम और कर्म पर ध्यान देना चाहिए. साथ ही कर्म करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी कर्म कर रहे हैं, उसका फल भी हमें निश्चित ही प्राप्त होगा.


गीता हमें बताती है कि जीवन क्या है और इसे कैसे जीना चाहिए, आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होते है, अच्छे और बुरे की समझ क्यों जरूरी है. इन सभी गूढ़ सवालों से जवाब हमें गीता से प्राप्त होते हैं. लेकिन सवाल यह है कि गीता का पूर्णत: ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है और इसके लिए इसे कितनी बार पढ़ना चाहिए.


गीता या फिर किसी भी पाठ से ज्ञान को प्राप्त करने के चार स्तर होते हैं-



  1. श्रवण या पठन ज्ञान

  2. मनन ज्ञान

  3. निदिध्यासन ज्ञान

  4. अनुभव ज्ञान


इन चारों स्तर से गुजरने के बाद ही किसी भी ज्ञान की पूर्णता होती है और इससे समुचित लाभ होता है. इसका अर्थ यह है कि आप पहले पढ़ते या सुनते हैं. इसके बाद पढ़े-सुने ज्ञान के बारे में चिंतन व मनन करते हैं. यदि वह आपको ठीक और उपयोगी लगती है तब उसका अभ्यास कर उसे अपने जीवन में उतारते हैं और आखिर में उस ज्ञान का प्रतिफल आपको मिलता है.


किसी भी ज्ञान को आप पढ़कर या सुनकर छोड़ देंगे, उसे अपनाएंगे नहीं तो उसका फल कैसे मिलेगा. यही बात गीता पर भी लागू होती है. जब हम गीता पढ़कर उसके उपदेशों को जीवन में उतारेंगे तो निश्चित ही सुपरिणाम सामने आएगा.


कितनी बार पढ़ना चाहिए श्रीमद्भागवत गीता और क्या है इसके लाभ



  • जब हम पहली बार गीता पढ़ते हैं तो इसे हम एक अंधे व्यक्ति के रूप मे पढ़ते हैं. यानी हमें केवल इतना ही समझ पाते हैं कि कौन किसके पिता, कौन किसकी बहन और कौन किसका भाई है. पहली बार गीता पढ़ने पर इससे ज्यादा कुछ समझ में नहीं आता.

  • जब हम दूसरी बार गीता पढ़ते हैं तो मन में कुछ सवाल जागृत होंगे कि ऐसा क्यों किया गया या वैसा क्यों हुआ?

  • जब हम तीसरी बार गीता पढ़ेंगे तो इसके अर्थ को समझने लगेंगे. हालांकि हर व्यक्ति को इसका अर्थ अपने तरीके से ही समझ आएगा.

  • जब चौथी बार हम गीता पढेंगे तो हर एक पात्र से जुड़ी भावनाओं को समझ पायेंगे. जैसे अर्जुन के मन में या दुर्योधन के मन में क्या चल रहा हैं.

  • पांचवी बार गीता को पढ़ने से पूरा कुरूक्षेत्र हमारे मन में खड़ा हो जाता है और हमारे मन में अलग- अलग कल्पनायें होती हैं.

  • छठवीं बार गीता पढ़ने से हम भगवान को अपने सामने अनुभव करने लगते हैं और हमें ऐसा लगता है कि भगवान हमारे सामने ये सब बता रहे हैं.

  • आठवीं बार गीता को पढ़ते से हमें यह पर्णत: अहसास हो जाता है कि कृष्ण कहीं बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर ही हैं और हम उनके भीतर.


श्रीमद्भगवत गीता पाठ के नियम



  • भगवत गीता पढ़ने के लिए सुबह का समय सबसे उत्तम माना जाता है. क्योंकि इस समय मन, मस्तिष्क और वातावरण में शांति व सकारात्मकता होती है.

  • गीता का पाठ हमेशा स्नान के बाद और शांत चित्त मन से ही करना चाहिए.

  • पाठ करते समय बीच-बीच में इधर-उधर की बातें नहीं करनी चाहिए और न ही किसी कार्य के लिए बार-बार उठना चाहिए.

  • साफ-सफाई वाले स्थान और जमीन पर आसन बिछाकर ही गीता का पाठ करना चाहिए.

  • गीता के प्रत्येक अध्याय को शुरू करने से पहले और बाद भगवान श्रीकृष्ण और गीता के चरण कमलों को स्पर्श करना चाहिए.


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