Mahabharat: श्रीकृष्ण और रुक्मिणी को विवाह के बाद 12 साल के लिए होना पड़ा था अलग, ये थी वजह
Shri Krishna And Rukmani: रुक्मिणी के विवाह के कुछ दिनों बाद ही एक ऐसी घटना घटित हुई जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण को रुक्मिणी से अलग होना पड़ गया है. वो भी पूरे 12 साल के लिए. इसके पीछे क्या थी वजह आइए जानते हैं.
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Mahabharat In Hindi: भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का जब विवाह संपन्न हो गया तो ये दोनों अधिक दिनों तक साथ नहीं रह पाए. भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी से एक ऐसी गलती हो गई जिसके कारण दोनों को 12 साल के लिए अलग होना पड़ा. यह समय दोनों के लिए बहुत कष्टप्रद रहा, बावजूद भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी ने इस कष्टपूर्ण समय को भी प्रसन्नता के साथ काटा. अलग होने के पीछे ये बड़ी वजह थी.
दुर्वासा ऋाषि ने दिया था श्राप एक पौराणिक कथा के अनुसार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण के कुलगुरु थे. श्रीकृष्ण दुर्बासा ऋषि का बेहद आदर और सम्मान करते थे. विवाह के बाद भगवान श्रीकृष्ण को रुक्मिणी को कुलगुरु का आर्शीवाद दिलाने का विचार आया. रुक्मिणी की भी इच्छा जागृत हुई. शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर दुर्वासा ऋषि के आश्रम पहुंचे.
दुर्वासा ऋषि का आश्रम द्वारका से कुछ दूरी पर स्थित है. आश्रम पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी ने दुर्वासा ऋषि का आर्शीवाद प्राप्त किया और महल में आकर भोजन ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया. जिसे दुर्वासा ऋषि ने स्वीकार कर लिया लेकिन एक एक शर्त भी रख दी. शर्त के बारे में दुर्वासा ऋषि ने दोनो से कहा कि जिस रथ से भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी आए हैं उस रथ से महल नहीं जाएंगे. वे तभी महल में जाएंगे जब उनके लिए नया रथ मंगाया जाएगा.
भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के मुख की तरफ देखा और दुर्वासा ऋषि के सम्मुख हाथ जोड़कर कहा कि गुरुवर जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा, आपके लिए अभी नए रथ का प्रबंध करता हूं. भगवान ने नए रथ का प्रबंध कर दिया लेकिन एक ही रथ होने की वजह से भगवान कृष्ण ने रथ के दोनों घोड़ों को निकाल दिया और उनकी जगह श्रीकृष्ण और रुक्मणी स्वयं रथ में जुत गए.
दोनों मिलकर खींचा दुर्वासा ऋषि का रथ ऐसा करने के बाद दोनों ने दुर्वासा ऋषि को रथ पर आने के प्रार्थना की. इसके बाद दुर्वासा ऋषि रथ पर सवार हो गए और भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी मिलकर रथ को खींचने लगे. लंबी दूरी तय करने के बाद रुक्मिणी को प्यास सताने लगी. भगवान ने रुक्मिणी को धैर्य रखने के लिए कहा और बोले की कुछ दूर और रथ को खींच लो इसके बाद महल आ जाएगा.
लेकिन रुक्मिणी का गला सूखने लगा और वे परेशान होने लगीं. तब भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी की प्यास बुझाने के लिए जमीन पर अपने पैर का अंगूठा मारा, जिससे जल क श्रोत फूट पड़ा. धरती से गंगाजल की धारा फूट पड़ी. जिससे रुक्मणी ने अपनी प्यास शांत की इसके बाद रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण से भी थोड़ा जल पीने का आग्रह किया. भगवान श्रीकृष्ण ने भी जल ग्रहण कर लिया.
तपस्या से दूर हुआ श्राप इस घटना से दुर्वासा ऋषि बेहद नाराज हो गए. वे क्रोध में आ गए और बोले की तुम दोनों ने अपनी प्यास बुझा ली लेकिन मुझसे पूछना भी उचित नहीं समझा. तब क्रोध में आकर दुर्वासा ऋषि ने भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को 12 साल तक अलग रहने का शाप दे दिया. इस शाप से दोनों को बहुत दुख हुआ. शाप के कारण भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी को अलग होना पड़ गया. शाप से मुक्त होने के लिए रुक्मिणी ने भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की जिसके बाद वे शाप से मुक्त हुईं.
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