Shakuni Mama: महाभारत (Mahabharat) के पात्रों में शकुनि मामा का रोल सबसे अहम रहा, जिसके कारण महाभारत का युद्ध हुआ. कौरवों के मामा शकुनि कुटिल बुद्धि के लिए विख्यात थे. छल, कपट, प्रतिशोध और दुष्कृत्यों में माहिर शकुनि युद्ध के अंत तक कौरवों के साथ रहे. आइये जानते हैं कैसे कौरवों के मामाश्री शकुनि दुर्योधन के साथ होकर पांडवों के लिए काम कर रहे थे.


शकुनि के ईर्द-गिर्द घूमती है महाभारत की कहानी


प्रतिशोध की आग में जल रहे शकुनि ने पांडवों और कौरवों के बीच भी प्रतिशोध की ऐसी आग लगाई जिसके आखिर में वह खुद भी खत्म हो गया. पांडवों के विनाश के लिए शकुनि की चली चाल में वह स्वयं भी नष्ट हो गया. यही कारण है कि महाभारत की कहानी कौरवों और पांडवों के ईर्द-गिर्द जितनी घूमती है, उतनी ही शकुनि के आसपास भी घूमती है.


दुर्योधन के साथ रहकर पांडवों के लिए काम कर रहा है शकुनि


यह बात सच है कि शकुनि था तो दुर्योधन के साथ लेकिन काम पांडवों के लिए कर रहा है था. यह काम था पांडवों के विनाश का. शकुनि पांडवों के विनाश के लिए कौरवों को पग-पग तैयार कर रहा था. लेकिन शकुनि के मन में कौरवों के लिए भी बदले की भावना थी. इसका कारण यह था कि धृतराष्ट्र (शकुनि के जीजा) ने शकुनि के पूरे परिवार को कारागर में डाल दिया था और पूरे परिवार को केवल एक समय मुट्ठीभर अनाज दिया जाता था.


परिवार वालों ने निर्णय लिया कि यह भोजन सबसे छोटे पुत्र यानि शकुनि को दिया जाए, जिससे कि वह जीवित रहकर बदला ले सके. इस तरह शकुनि ने एक-एक कर अपने परिवार की मृत्यु देखी और बहन के ही परिवार को नष्ट करने का प्रण लिया.


सभी परिवार की मृत्यु हो जाने के बाद शकुनि ही आखिर में जीवित बचा. दुर्योधन ने पिता से विनती की कि उसे माफ कर दिया जाए और जेल से बाहर निकाला जाए. जेल से बाहर आकर शकुनि ने सबका विश्वास जीत लिया. बाद में दुर्योधन ने शकुनि को अपना मंत्री भी नियुक्त कर दिया. शकुनि ने धीरे-धीरे दुर्योधन को अपने मोहपाश में बांध लिया, जिसके बाद शकुनि का काम और भी आसान हो गया. शकुनि के कारण ही पांडवों को वनवास भोगना पड़ा, द्रौपदी का चीरहरण हुआ और आखिर में महाभारत का युद्ध हुआ.


महाभारत के युद्ध में भले ही शकुनि ने दुर्योधन का साथ दिया लेकिन वह जितनी नफरत कौरवों से करता था उतनी ही नफरत पांडवों से भी करता था. इसलिए उसने ऐसी चाल चली जिससे पांडव और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ.


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