Mahabharat In Hindi: महाभारत की कथा में अर्जुन की चार पत्नियों के बारे में पता चलता है. द्रौपदी के अतिरिक्त अर्जुन ने उलुपी, चित्रागंदा और सुभद्रा से भी विवाह किया था. इन सभी से विवाह करने के पीछे एक कथा भी है.


ऐसे हुआ था द्रौपदी से विवाह
द्रौपदी पांचाल देश की राजकुमारी थीं. इसीलिए द्रौपदी का एक नाम पंचाली भी था. जिस समय पांडव भेष बदल कर रह रहे थे तब द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर का आयोजन किया. इस स्वयंवर में कई देशों के राजाओं ने भाग लिया था. स्वयंवर में यह शर्त रखी गई कि जो व्यक्ति धनुष पर वाण चढ़ाकर नीचे पानी में देखकर ऊपर घूम रही मछली की आंख का निशाना लगा लेगा उसी के साथ द्रौपदी का विवाह करा दिया जाएगा. पांडव भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ इस स्वयंवर में भाग लेने पहुंचे. श्रीकृष्ण का इशारा पाकर अर्जुन ने एक तीर से मछली की आंख को भेद दिया. इसके बाद द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी और इस प्रकार से अर्जुन से द्रौपदी का विवाह हुआ.


सुभ्रदा से अर्जुन को था विशेष लगाव
चारों पत्नियों में अर्जुन को सुभद्रा से विशेष लगाव था. सुभद्रा सभी पत्नियों में सबसे प्रिय थीं. सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं. श्रीकृष्ण के पिता वासुदवे ने दो विवाह किए थे. देवकी और रोहिणी से. सुभद्रा रोहिणी की संतान थीं. सुभद्रा और अर्जुन के विवाह में भगवान श्रीकृष्ण ने विशेष भूमिका निभाई थी. अभिमन्यु सुभद्रा की संतान थे.


नाग कन्या उलपी ऐसे बनीं अर्जुन की पत्नी
उलपी नाग कन्या थी. अर्जुन ने द्रौपदी के बाद उलपी से विवाह किया था. एक बार द्रौपदी और युधिष्ठिर के साथ रहने के दौरान अर्जुन ने नियम का उल्लंघन कर दिया, जिस कारण अर्जुन को 12 वर्ष तक जंगलों में भटकना पड़ा. इसी दौरान अर्जुन की मुलाकात नाग कन्या उलपी से हुई. अर्जुन उलपी की सुदंरता पर मुग्ध हो गए. उलपी के साथ अर्जुन नागलोक आ गए जहां दोनों का विवाह हुआ. उलपी से अरावन नाम का पुत्र पैदा हुआ. किन्नर अरावन देवता की पूजा करते हैं.


चित्रांगदा से विवाह
एक कथा के अनुसार चित्रांगदा का संबंध मणिपुर से है. चित्रांगदा मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री थी. चित्रांगदा को देखकर अर्जुन को प्रेम हो गया. अर्जुन ने चित्रांगदा के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा. राजा चित्रवाहन विवाह के लिए सहमत हो गए. लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी. इस शर्त के अनुसार चित्रांगदा और उसके पुत्र को मणिपुर में ही रहना होगा. इस शर्त को अर्जुन ने मान लिया. इसी कारण चित्रांगदा और पुत्र बभ्रुवाहन वहीं रहे.


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