Mahabharat : पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध में लाखों योद्धा वीरगति को प्राप्ति हुए थे, बचने वालों में पांडवों से 15 और कौरवों से तीन योद्धा थे. इस तरह इस युद्ध ने पूरे भारतवर्ष को लगभग योद्धा विहीन कर दिया. कुरुक्षेत्र में भाग लेने वाले सभी योद्धा पुरुष थे, जिनकी विधवाएं और परिजन शोक में डूबे थे, लेकिन युद्ध के 15 वर्ष बाद वह सभी एक रात के लिए जीवित हो उठे, जहां उनकी न सिर्फ मुलाकात हुई बल्कि कई विधवाएं अपने पतियों के साथ बैकुंठ जाने के लिए जल समाधि में चली गईं. आइये जानते हैं, महाभारत युद्ध के बाद आखिर क्या हुआ?


महाभारत के आश्रमवासी पर्व के 33वें अध्याय में वर्णन है कि युद्ध के बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर के नरेश बने और पांचों भाइयों के साथ राज-काज चलाते हुए ज्येष्ठ पिता धृतराष्ट्र, माता गांधारी और कुंती की सेवा करने लगे. सेवा से प्रसन्न धृतराष्ट्र-गांधारी करीब पंद्रह वर्ष में अपने पुत्रों के शोक से उबर गए. मगर एक दिन धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से कहा कि पुत्र हम बचा जीवन वन में बिताना चाहते हैं. हमें जाने दो. इस पर युधिष्ठिर दुखी हो गए, लेकिन विदुर के समझने पर मान गए.


अगले दिन धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती, विदुर और संजय तपस्वी का रूप धर वन चले गए. इस बीच पांडवों की देखभाल से हस्तिनापुर की प्रजा खुश थी मगर युद्ध में विधवा हुईं स्त्रियां अक्सर शोक में रोती रहती थीं. कुछ समय बाद एक दिन सहदेव को मां कुंती से मिलने की इच्छा हुई तो भीम, अर्जुन, नकुल और उनकी पत्नियां कुंती से मिलने के लिए आतुर हो गईं. अगले दिन पांडव द्रौपदी को लेकर वन के लिए निकले तो हस्तिनापुर निवासी भी साथ हो लिए. इनके साथ उन योद्धाओं की विधवा भी थीं, जिनके पति महाभारत युद्ध में मारे गए थे. वन पहुंचकर जनता भी धृतराष्ट्र और कुंती के आश्रम के आस-पास रहने लगे.


वेद व्यास ने किया शोक निवारण
इस बीच एक दिन महर्षि वेद व्यास पांडवों से मिलने आश्रम आए. मगर यहां पांडव सहित हस्तिनापुर के निवासियों को परिजनों के शोक में डूबा देखकर कहा कि आप लोग वीरगति को प्राप्त परिजनों के लिए शोक न करें. वे सभी स्वर्ग या फिर दूसरे लोकों में सुखी हैं. व्यास की इन बातों का लोगों पर असर नहीं हुआ. इस पर महर्षि ने कहा कि आज रात मैं आप को परिजनों से मिलवाऊंगा. तब धृतराष्ट्र और गांधारी ने युद्ध में मृत पुत्रों और कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की. द्रौपदी आदि ने कहा कि वे भी परिजनों को देखना चाहती हैं.


आश्रम गंगा तट पर था. सूर्यास्त होने से पहले महर्षि वेद व्यास सभी को लेकर गंगा तट पर पहुंचे फिर सूर्यास्त के बाद उन्होंने तपोबल से महाभारत में मारे गए योद्धाओं का आवाहन किया. इसके बाद एक एक कर योद्धा गंगा जल से निकलने लगे. थोड़ी ही देर में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, अभिमन्यु, धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र, राजा द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शकुनि, शिखंडी आदि वीर जल से बाहर निकल आए. महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र-गांधारी को दिव्य नेत्र दिए. मृत परिजनों को सामने खड़ा देख पांडव समेत हस्तिनापुर के सभी निवासी खुश हो गए. फिर सभी ने परिजनों से बात की, तब विश्वास हुआ कि उनके परिजन मृत्युलोक के सभी कष्टों से मुक्ति पाकर अपने-अपने लोकों में रह रहे हैं. इसके बाद सभी के मन भरा शोक खत्म हो गया. 


विधवाएं पतियों के साथ परलोक गईं
एक रात की मुलाकात के बाद मारे गए योद्धा एक एक कर गंगा जल में डुबकी लगाकर गायब होने लगे. यह देख महर्षि व्यास ने विधवा स्त्रियों से कहा कि जो स्त्रियां पति के साथ उनके लोक जाना चाहती है वे गंगा जल में जीवन त्याग कर जा सकती है. इतना कहते ही सभी विधवा स्त्रियों ने गंगा जल में डुबकी लगाकर जीवन त्याग दिया और पति के लोक चली गई.


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