Mahabharat: किसके आदेश पर अर्जुन के रथ की ध्वाजा में विराजे थे हनुमान, जानें यह रोचक कथा
महाभारत काल में भीम और हनुमानजी की मुलाकात के बारे में तो सब जानते हैं लेकिन अर्जुन और भीम की मुलाकात के बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है.
महाभारत में हनुमान और भीम की मुलाकात का जिक्र तो अक्सर आता है. दूरर्दशन पर अस्सी के दशक के अंतर में प्रसारित हुए अत्यंत लोकप्रिय टीवी सीरियल महाभारत में भी इस प्रसंग को दिखाया गया था. लेकिन हनुमान जी का एक और प्रसंग है जिसकी जानकारी कम लोगों को है. यह प्रसंग है हनुमानजी और अर्जुन की मुलाकात की. हालांकि इस प्रसंग का वर्णन कथाओं में अलग अलग आया है.
एक कथा के अनुसार जब दोनों की मुलाकात होती है तो अर्जुन घमंड से हनुमानजी को कहता है कि मैं आपके समय होता तो पत्थर का रामसेतु बनवाने के बजाय अकेले ही अपने धनुष से ही मजबूत सेतु बना देता. आपके प्रभु श्रीराम ने ऐसा क्यों नहीं किया क्या वे इस काबिल नहीं थे.
अर्जुन की बात सुनकर हनुमानजी ने कहा- वहां बाणों का सेतु कोई काम नहीं कर पाता. हमारा यदि एक भी वानर चढ़ता तो बाणों का सेतु टूट हो जाता.
अर्जनु ने पटलकर जवाब दिया कि वह सामने के सरोवर में अपने बाणों से एक सेतु बनाएंगे. उन्होंने हनुमान जी से कहा कि इस सेतु पर आप चल सकते हैं यह नहीं टूटेगा. अगर आपके चलने से सेतु टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा. हनुमान जी ने अर्जन की यह चुनौती स्वीकार कर ली .
हनुमान जी के सेतु पर पहला पग रखने पर सेतु डगमगाने लगा, दूसरा पग रखने पर चरमराया और तीसरा पग रखने से रोवर के जल में खून ही खून हो गया. इसके बाद हनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि अग्नि तैयार करो. अग्नि प्रज्वलित हुई और जैसे ही हनुमान अग्नि में कूदने चले वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए.
श्रीकृष्ण ने कहा- हे हनुमान! आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा, उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था. आपकी शक्ति से आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया. यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो. यह सुनकर हनुमान ने क्षमा मांगी और कहा कि मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा. वहीं यह सारी घटना देखकर अर्जुन को भी बड़ा पछतावा हुआ और उन्होंने भी हनुमानजी और प्रभु श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी.
तब श्रीकृष्ण ने हनुमानजी से कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है. आप दुखी न हो, मेरी इच्छा है कि आप अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो. यही वजह थी हनुमान जी अर्जुन के रथ की ध्वाजा में विराजे हुए थे जिससे अर्जुन हर मुश्किल से बच गया.
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