Mahakumbh Mela: महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल के बाद किया जाता है. यह मेला दुनिया का सबसे विशाल, पवित्र, धार्मिक और सांस्कृतिक मेला है, जोकि 45 दिनों तक चलता है. जानते हैं अगला महाकुंभ मेला कब लगेगा और महाकुंभ मेले से जुड़ी जरूरी बातें.


कब लगेगा अगला कुंभ मेला


मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ ।
अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके ॥
यानी: मेष राशि के चक्र में बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ पर्व प्रयागराज में आयोजित किया जाता है.


आखिरी बार कुंभ मेला या पूर्ण कुंभ मेला 2013 में लगा था. अब इसके बाद अगला कुंभ मेला 2025 में लगेगा. इसके लिए 9 अप्रैल से लेकर 8 मई 2025 की तारीख निर्धारित की गई है.



महाकुंभ 2025 स्नान की तारीखें


2025 में महाकुंभ का स्नान 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से शुरू होगा, 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर शाही स्नान, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या का शाही स्नान, 3 फरवरी को वसंत पंचमी का आखिरी शाही स्नान होगा. इसके बाद 4 फरवरी को अचला सप्तमी, 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा और 26 फरवरी महाशिवरात्रि पर आखिरी स्नान का पर्व होगा. इस तरह से महाकुंभ पूरे 45 दिनों तक चलेगा. इसमें तीन शाही स्नान 21 दिनों में पूरे होंगे.


कुंभ मेलों के प्रकार



  • महाकुंभ मेला:  इस मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेला के बाद आता है.

  • पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. इसे भारत में 4 कुंभ यानी प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है. 12 साल के अंतराल में इन 4 कुंभ में इस मेले का आयोजन बारी-बारी से होता है.

  • अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जोकि हर 6 साल में दो स्थानों हरिद्वार और प्रयागराज में होता है.

  • कुंभ मेला: इस मेले का आयोजन चार अलग-अलग स्थानों पर हर तीन साल में आयोजित किया जाता है.

  • माघ कुंभ मेला: माघ कुंभ मेला हर साल माघ के महीने में प्रयागराज में आयोजित किया जाता है.


कैसे निर्धारित होती है कुंभ मेले की तिथि


कब और किस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाएगा इसकी तिथि ग्रहों और राशियों पर निर्भर करती है. कुंभ मेले में सूर्य और बृहस्पति को महत्वपूर्ण माना जाता है. जब सूर्य और बृहस्पति ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन होता है. इसकी तरह से स्थान भी निर्धारित किए जाते हैं.



  • जब बृहस्पति वृष राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में होते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयाग में होता है.

  • सूर्य जब मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में होता है.

  • सूर्य और बृहस्पति जब सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ मेला नासिक में होता है.

  • जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ का आयोजन उज्जैन में किया जाता है.  


कुंभ के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं ये ग्रह


सभी नवग्रहों में  कुंभ के लिए विशेषकर सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि  की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. कहा जाता है कि, अमृत कलश के लिए जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ तो कलश की खींचातानी में चंद्रमा ने अमृत को गिरने से बचाया, गुरु ने अमृत कलश को छिपाया, सूर्य ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से कलश की रक्षा की.


12 साल में क्यों होता है कुंभ, जानें पौराणिक कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और देवतागण कमजोर पड़ गए तब असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था. तब भगवान विष्णु ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करके अमृत निकालने को कहा. इसके बाद देवता और असुरों ने अमृत निकालने का प्रयास किया और समुद्र से अमृत कलश भी निकला. देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत कलश को लेकर उड़ गया. तब असुरों ने जयंत का पीछा किया और जयंत को पकड़ लिया. इसके बाद असुर अमृत कलश पर अधिकार जमाने लगे. अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला रहा. इस दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदे प्रथ्वी के चार स्थानों पर गिर गई. पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन और चौथी बूंद नासिक में गिरी. इसीलिए इन चार स्थानों को पवित्र माना जाता है और कुंभ मेले का आयोजन इन्हीं स्थान पर किया जाता है. अमृत कलश के लिए 12 दिनों तक देवताओं ने युद्ध किया था. देवताओं के यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं. यही कारण है कि हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है.


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