Sawan 2021 : महामृत्युंजय मंत्र से मिलती है दीर्घायु, जानें कैसे हुई थी रचना
महामृत्युंजय मंत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के साथ व्यक्ति को भयमुक्त बनाता है. अकाल मृत्यु को टालने के लिए भी इसका जप किया जाता है. आइए जानते हैं कि इस मंत्र की रचना से जुड़ी अनूठी बातें.
Sawan 2021 : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महामृत्युंजय मंत्र का जाप पहली बार मार्कण्डेय ऋषि ने खुद की अल्पआयु टालने के लिए किया था. मृकण्ड शिव भक्त ऋषि थे, जो निसंतान थे. पुत्र की आस में उन्होंने घनघोर तपस्या की. प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने वरदान मांगने को कहा तो मृकण्ड ऋषि ने पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा. शिव ने विधि का विधान बदलकर पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया तो दे दिया, लेकिन पुत्र के अल्पआयु होने की शर्त रख दी. मृकण्ड ऋषि ने भोलेनाथ का वह प्रसाद ग्रहण किया और 12 वर्ष के लिए ऋषि को पुत्र की प्राप्ति हुई. मृकण्ड ऋषि ने पुत्र मार्कण्डेय को शिव मंत्र की दीक्षा दी. बालक मार्कण्डेय को मालूम चला कि वह अल्प आयु है तो उन्होंने प्रण लिया कि वह माता-पिता की खुशी के लिए भोलेनाथ से दीर्घायु का वरदान लेकर रहेंगे. तब उन्होंने एक मंत्र की रचना की, जिसे महामृत्युंजय मंत्र कहा गया.
यमराज लगे थे कांपने
शिव को प्रसन्न करने के लिए मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू कर दिया. ऋषि का समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने पहुंचे, लेकिन उपासना में लीन देखकर लौट गए. यमराज को जानकारी होने पर वह खुद मार्कण्डेय को लेने पहुंचे. यमराज को आता देखकर वह और जोर-जोर से मंत्र का जाप करने लगे और शिवलिंग में लिपट गए. यमराज बालक को खींचकर कर ले जाने लगे. तभी अचनाक मंदिर कांपने लगा और शिवलिंग से महाकाल प्रकट हो गए. क्रोधित महाकाल ने यमराज से कहा कि उनकी हिम्मत कैसे हुई साधना में लीन भक्त की उपासना में विघ्र डालने की. महाकाल के क्रोध से भयभीत यमराज कांपने लगे. उन्होंने कहा, प्रभु मैं आपका सेवक हूं और प्राणों को हरने का मेरा हक है. इस जीव का समय पूरा हो गया है. यमराज की बात सुनकर महाकाल शांत हुए और बोले, तुम सही कहते हो पर मैं इसकी भक्ति से प्रसन्न होकर दीर्घायु का वरदान देता हूं. मैं कभी भी महामृत्युंजय का पाठ करने वाले का त्रास नहीं करूंगा, यह कहकर भोलेनाथ की आज्ञा से यमराज वहां से चले गए.
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
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