Mahashivratri 2021: भगवान शिव सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा धारण करते हैं, क्यों? आइये जानें पूरी कथा
Mahashivratri 2021: फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने पर्व महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा की जाती है. भगवान शिव अपने सिर पर गंगा को और मस्तक पर चंद्रमा को धारण करते हैं. आइये जानें इसके पीछे की कथा क्या है?
Mahashivratri Parv 2021: वैसे तो हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इसके मनाए जानें के कारणों में, ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था.
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. शिव भक्त भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए पूजा के साथ व्रत भी रखते हैं.
भोलेनाथ के सिर पर मां गंगा विराजमान है तो मस्तक पर चंद्रदेव. ऐसा क्यों? आइए जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा.
क्यों मां गंगा को सिर पर धारण करते हैं भगवान शिव?
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव के हर आभूषण का विशेष महत्व और प्रभाव है. इन्हीं आभूषणों में से एक आभूषण मां गंगा भी हैं. पुराणों में ऐसी कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में भागीरथ एक प्रतापी राजा थे. उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की. भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने को तैयार हो गईं. परन्तु मां गंगा ने भागीरथ से कहा कि यदि वे स्वर्ग से सीधे पृथ्वी पर गिरेंगी तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पायेगी और पृथ्वी नष्ट हो जायेगी. यह बात सुनकर भागीरथ बहुत चिंतित हुए. मां गंगा को यह अभिमान भी था कि उनका वेग कोई सहन नहीं कर पायेगा.
चिंता के निदान हेतु भागीरथ ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की. भागीरथ की कठोर तपस्या से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा. तब भागीरथ ने अपना सारा मनोरथ भोलेनाथ से कहा.
गंगा जैसे ही स्वर्ग से नीचे पृथ्वी पर आने लगी वैसे ही भगवान शिव ने अपनी जटा में उन्हें कैद कर लिया. तब वह छटपटाने लगी और शिव से माफ़ी मांगी. तब शिव ने उन्हें एक पोखरे में छोड़ा. जहां से वे सात धाराओं में बंटी.
इस लिए भगवान शिव के सिर पर विराजमान हैं चंद्रमा
एक कथा के मुताबिक, समुद्र मंथन से निकले विष से सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने विष को पी लिया था. इससे भगवान शिव का शरीर गर्म हो गया. तब चंद्रमा ने भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए उनके सिर पर विराज होने की प्रार्थना की. लेकिन शिव ने चंद्रमा के आग्रह को नहीं माना. लेकिन जब भगवान शंकर विष के तीव्र प्रभाव को सहन नहीं कर पाये तब देवताओं ने सिर पर चंद्रमा को धारण करने का निवेदन किया. देवताओं की आग्रह को स्वीकार करते हुए जब शंकर भगवान ने चंद्रमा को धारण किया. तब विष के प्रभाव की तीव्रता धीरे –धीरे कम होने लगी. तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान है.