Mahashivratri 2022 : क्या है महाशिवरात्रि व्रत कथा? जानिए वर्ष 2022 में कब है महाशिवरात्रि व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
Mahashivratri 2022 : निश्छल मन से की पूजा से मिलती है भोले की कृपा. जाने क्या है इस दिन की व्रत कथा? काल के काल और देवों के देव महादेव भक्तों का मंगल करते हैं और श्री - संपत्ति प्रदान करते है.
Mahashivratri 2022 : महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है. कहीं - कहीं लोग चतुर्दशी के दिन भी इस व्रत को करते हैं .यूं तो हर माह शिवरात्रि होती है, परंतु महाशिवरात्रि के दिन विशेष महत्व है. यह भगवान शंकर का अत्यन्त महत्वपूर्ण व्रत है. इस व्रत को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, नर - नारी, बालक वृद्ध हर कोई कर सकता है.
सृष्टि के प्रारम्भ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था. प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय शिव तांडव करते हुए, ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर देते हैं. मां जगदंबा के पति शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं. उनके शरीर पर श्मशान की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में विश्व तारिणी पावन गंगा तथा माथे में तीसरा नेत्र है, उनका वाहन बैल है. काल के काल और देवों के देव महादेव भक्तों का मंगल करते हैं और श्री - संपत्ति प्रदान करते है. चलिए जानते है देवों के देव भगवान शंकर का यह महाशिवरात्रि व्रत इस वर्ष 2022 को कब है -
महाशिवरात्रि व्रत तिथि और मुहूर्त -
महाशिवरात्रि 2022 - 1 मार्च 2022, मंगलवार
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ – 1 मार्च 2022, 3:16 AM
चतुर्दशी तिथि समापन – 2 मार्च 2022, बुधवार को 1 AM
व्रत का पारण – 2 मार्च 2022, बुधवार को सुबह 6:45
व्रत एवं पूजन विधि
प्रातःकाल को शुद्ध धुले वस्त्र धारण कर श्रद्धा भक्ति सहित व्रत रखकर मंदिर में अथवा घर पर ही शिव पार्वती की पूजा करें.
पत्र-पुष्प तथा सुन्दर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र वेदी बनाकर उस पर जल भरकर कलश स्थापित करके कलश पर शिव-पार्वती की स्वर्ण प्रतिमा और नंदी की चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये. यदि मूर्ति न बन सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना ले.
गंगाजल, बिल्व पत्र, पुष्प, रोली, मौली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चन्दन, दूध, दही, घी, शहद, कमल गुहा, धतूरे के फल, आक के फल, पुष्प पत्र का प्रसाद भोग शिवजी को अर्पित करके पूजन करें.
महाशिवरात्रि की कथा
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, "ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? "उत्तर में शिवजी ने पार्वती को शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- एक गांव में एक शिकारी रहता था. पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुंब को पालता था. वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव सम्बन्धी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. सन्ध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया. अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिन भर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था. शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा. बेल- वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्बपत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला. पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं. इस प्रकार दिनभर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए.
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्योंहि प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, "मैं गर्भिणी हूं. शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना. "शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई. कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली. शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया. तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, "हे शिकारी मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं. कामातुर विरहिणी हूं. अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं. मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी. शिकारी ने उसे भी जाने दिया.
दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका. वह चिंता में पड़ गया. रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था. तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों साथ उधर से गुजरी. शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगायी. वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, "हे शिकारी, मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी. इस समय मुझे मत मारो. "शिकारी हंसा और बोला, "सामने आए शिकार को छोड़ दूं मैं ऐसा मूर्ख नहीं, इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं. मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे होंगे. "उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, "जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी. इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवन दान मांग रही हूं. हे शिकारी मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरन्त लौटने का वचन देती हूं. "हिरणी का आर्त स्वर सुनकर शिकारी को उस पर भी दया आ गयी, उसने उस हिरणी को भी जाने दिया. शिकार के अभाव में बेल वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़ - तोड़ कर नीचे फेंकता जा रहा था. पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट - पुष्ट हिरण उसी रास्ते पर आया. शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा. शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनती करने लगा, और बोला, "हे शिकारी भाई, यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े. मैं उन हिरणियों का पति हूं. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करें. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा. "मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाक्रम घूम गया. उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब हिरण ने कहा, 'मेरी तीन पत्नियां जिस प्रकार वचनबद्ध होकर गई हैं . मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी. अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो.
मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित हो जाऊंगा. "उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक मन निर्मल हो गया था. उसमें दया भाव जाग्रत हो गयी थी. धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए. भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया. वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा. थोड़ी ही देर बाद वह हिरण का परिवार शिकारी के सामने आ गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके. किन्तु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. उसके नेत्रों से आंसुओं की धारा बहने लगी. उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया. देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे. घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की. शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए.
बसंत में भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्व, जानें कृष्ण और अर्जुन के बीच क्या हुई थी बात