Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि अर्थात वह महान रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है. शिवपुराण में कहा गया है कि महाशिवरात्रि ही वो रात थी महादेव शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे इन्हें ज्योतिर्लिंग नाम दिया गया. उस दिन शिवलिंग के प्रारंभ और अंत का कोई पता नहीं लगा पाया था.


यहां तक कि ब्रह्मा और विष्णु भी शिवलिंग के छोर तक पहुंच पाने में असंभव थे. शिव का यही स्वरूप महाशिव कहलाया और वो रात महाशिवरात्रि. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन शिव-पार्वती का विवाह भी हुआ था. भगवान शिव के विवाह के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है. आइए जानते हैं शिव-पार्वती के विवाह की रोचक बातें.


 



शिव-पार्वती के विवाह की कथा (Shiv Parvati Vivah Katha)


1. कठिन परिस्थिति में हुआ सती संग विवाह


पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले सती से विवाह किया था. भगवान शिव का यह विवाह बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था क्योंकि सती ने शिव को अपना पति मान चुकीं थी लेकिन उनके पिता राजा दक्ष इस विवाह के खिलाफ थे.


हालांकि उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर सती का विवाह भगवान शंकर से कर दिया. राजा दक्ष ने दिव्य यज्ञ में अपने दामाद भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया और सभी देवताओं के समक्ष उनका अपमान भी करने लगे, पति का तिरस्कार देख देवी सती ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था.


2. शिव ने क्यों किया माता पार्वती संग विवाह


सती के वियोग में शिव घोर तपस्या में लीन हो गए. वहीं देवी सती ने राजा हिमवान के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. उस समय तारकासुर नाम के राक्षस का आतंक बढ़ चुका था. उसे ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु सिर्फ शिव की संतान के हाथों ही हो सकती है. सभी ने शिव से पार्वती संग विवाह की गुहार लगाई लेकिन भगवान शंकर नहीं माने.


पार्वती जी महादेव को पाने के लिए भूखे-प्यारे तप में जुट गई. पार्वती के प्रेम को परखने और उनकी तपस्या भंग करने के लिए शिव जी ने कई प्रयास किए लेकिन देवी का टस से मस नहीं हुई. पार्वती का समर्पण देखकर और संसार की भलाई के लिए शंकर भगवान देवी पार्वती से विवाह के लिए राजी हो गए.


3. भूतों की टोली देखकर डर गईं देवी पार्वती की मां


शिव ठहरे शमशान निवासी. उन्हें पशुपति भी कहा जाता है क्योंकि वह समस्त जीवों, कीड़े, मकोड़े, जानवरों के भी देवता है. ऐसे में उनकी शादी में देवी-देवताओं के अलावा भूत,पिशात,दैत्य,पशु,विक्षिप्त, कीड़े भी मेहमान बनकर आए. बारात में भूतों की टोली को देखकर माता पार्वती की मां मैना सहम गईं. उन्होंने अपनी बेटी का हाथ शिव को सौंपने से मना कर दिया. स्थिति बिगड़ती देख पार्वती जी ने शिव से अनुरोध किया कि वह एक राजा के रूप में तैयार हो जाएं. इसके बाद शिव का फूलों और रत्नों से जड़ित माला से श्रृंगार किया.


4. इस स्थिति में चुप हो गए शिव


विवाह के दौरान रिवाज है कि वर-वधू की वंशावली की घोषणा की जाती है. वधू पक्ष यानी देवी पार्वती के वंश का खूब बखान किया गया लेकिन जब शिव की बारी आई तो महादेव चुप हो गए, क्योंकि शिव का माता-पिता तो नहीं थे. कहते हैं कि तब देव ऋषि नारद ने भगवान शिव के गुणों का गुणगान किया था.


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