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Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि पर सरगुजा के देवगढ़ में भक्तों की भीड़, अर्धनारीश्वर गौरी शंकर द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से है मशहूर
Mahashivratri 2024: देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. लेकिन बात करेंगे ऐसे शिवलिंग के बारे में जो 1943 में अस्तित्व में आया. इसे अर्धनारीश्वर गौरी शंकर द्वादश ज्योतिर्लिंग कहा जाता है.
Mahashivratri 2024 Ambikapur News: आज पूरे भारत में शिवभक्तों के लिए खास दिन है, क्योंकि महाशिवरात्रि है. इस शुभ दिन पर शिव मंदिर, शिवालयों में शिवभक्तों की सुबह से भीड़ लगी हुई है. महादेव की आराधना के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. ऐसे में सरगुजा जिले के देवगढ़ में भी हजारों श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं.
बता दें कि, सरगुजा के देवगढ़ में प्राचीन शिव मंदिर है. बताया जाता है कि सरगुजा की जीवनदायनी नदी कही जाने वाली रेण नदी के किनारे देवगढ़ धाम कभी मिट्टी में दफ़न था. जो साल 1943 में अस्तित्व में आया. जब जमगला गांव के विद्या दास को सपने में शिवलिंग गड़ा हुआ दिखाई दिया और अगले दिन जमीन की खुदाई की गई, तो करीब 4 फीट की गहराई में शिवलिंग दिखाई दिया. जिसमें एक जीवित दूध नाग लिपटा हुआ था. इस शिवलिंग को अर्धनारीश्वर गौरी शंकर द्वादश ज्योतिर्लिंग (Ardhanarishwar Gauri Shankar Dwadash Jyotirlinga) के नाम से जाना जाता है.
सरगुजा को पहले दण्डकारण्य के नाम से जाना जाता था. इसे ऋषि मुनियों और देवी देवताओं का पावन तपोवन स्थल माना जाता था. इसके अलावा देवगढ़ में महर्षि जमदग्नि का शतमहला आश्रम हुआ करता था. जहां छात्रों को ज्ञान और आध्यात्म की शिक्षा दी जाती थी. महादेव व गौरी के दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं. लोगों का मानना है कि इस दरबार में सच्ची श्रद्धा से जो भी मांगों वो ज़रूर मिलता है. कहा जाता है ये मंदिर अपने आप में समृद्ध इतिहास को समेटे हुए है. महादेव की महिमा को जान पाना संभव नहीं है. कैलाशपति जिस पर मेहरबान हो जाएं उसकी जिंदगी संवर जाती है. देवगढ़ धाम में भी महाकाल का अदभुत शिवलिंग मौजूद है, जो अधिक रहस्यमयी है.
अर्धनारीश्वर गौरी शंकर द्वादश ज्योतिर्लिंग का इतिहास (Ardhanarishwar Gauri Shankar Dwadash Jyotirlinga History)
मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में देवगढ़ में भृगुवंश के महर्षि जमदग्नि का शतमहला आश्रम था, जहां छात्रों को ज्ञान, विज्ञान, कला और आध्यात्म की शिक्षा देते थे. ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका थी, उनके पास एक कामधेनु गाय थी. कामधेनु गाय और शतमहला को हथियाने के लिए राजा सहस्त्रार्जुन ने आक्रमण कर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी. ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र परशुराम ने पिता के हत्यारे सहस्त्रार्जुन को परस्त करने के लिए तपस्या कर भगवान भीम शंकर को प्रसन्न कर पाशुपत अस्त्र प्राप्त कर सम्पूर्ण क्षत्रिय वंश का नाश भी कर दिया। पौराणिक कथाओं में किंवदंती मिलती है.
देवगढ़ जिसके नाम से ही स्पष्ट होता है देवो का गढ़, यह एक पुरातात्विक और धर्मिक स्थल के साथ साथ एक प्राकृतिक स्थल भी है. प्राचीन समय में इस स्थान पर बहुत से ऋषि मुनि ध्यान और ताप किया करते थे, इसलिए देवगढ़ को जमदग्नि ऋषि और उनके पुत्र परशुराम जी का तपोभूमि भी कहा जाता है. रेण नदी के किनारे बसे होने के कारण यहां का वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास में थे, तब वनगमन करते हुए नदी मार्ग से देवगढ़ आये थे. उस समय यह स्थान दंडकारण्य के नाम से जाना जाता था.
आज महाशिवरात्रि के मौके पर देवगढ़ में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया गया है. वहीं सरगुजा पुलिस की ओर से तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है. बता दें कि, सावन के अंतिम सोमवार और शिवरात्रि के अवसर पर मंदिर परिसर में भव्य मेले या आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होने पहुंचते हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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