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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Mahashivratri 2024: शिव क्यों हैं शून्य से परे, सद्गुरु से जानिए महादेव के बारे में

Mahashivratri 2024: सद्गुरु के अनुसार शिव ऐसे देव हैं जिनका वर्णन एक आदियोगी, तपस्वी, अघोरी, नर्तक, गृहस्थ व अन्य रूपों में किया गया है. लेकिन शिव ने इतने सारे विधिव रूप धारण क्यों किए,आइये जानते हैं-

Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि का पावन पर्व भगवान शिव को समर्पित महत्वपूर्ण पर्व है. जो हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. इस साल महाशिवरात्रि 08 मार्च 2024 को है. हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण देव भगवान शिव को लेकर कई गाथाएं और दंतकथाएं सुनने को मिलती है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि शिव कौन हैं? शिव एक पौराणिक कथा हैं, भगवान हैं, हिंदू संस्कृति की कल्पना हैं या शिव से कोई गहरा अर्थ भी जुड़ा है. आइये सद्गुरु से जानते हैं कि भगवान शिव के बारे में?

सद्गुरु कहते हैं कि, शिव पुराण में भगवान शिव के विध्वंसक और सुंदर दोनों तरह के रूपों का चित्रण किया गया है. जबकि आमतौर पर लोग जिसे दैवीय या दिव्य मान लेते हैं, उसका वर्णन सदैव अच्छे रूप में ही करते हैं. लेकिन शिव पुराण में कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या फिर बुरे तौर पर नहीं मिलता. यदि किसी एक व्यक्ति में सृष्टि की समस्त विशेषताओं का जटिल मिश्रण समाहित है तो वह ‘शिव’ है. जिसने शिव को स्वीकार लिया वह जीवन से परे जा सकता है, क्योंकि शिव शून्य से परे हैं.

शून्य से परे हैं शिव

आधुनिक विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि इस सृष्टि में सबकुछ शून्यता से ही आता है और वापस शून्य में चला जाता है. यानी अस्तित्व का आधार और पूरे ब्रह्मांड का मौलिक गुण शून्य है. इसमें उपस्थित आकाशगंगाएं तो बस छोटी-मोटी गितिविधियां मात्र हैं, जोकि किसी फुहार की तरह हैं. इसके अलावा अगर कुछ है तो बस खालीपन है, जिसे शिव के नाम से जाना जाता है. शिव ही वह गर्भ हैं जिससे सब कुछ जन्म लेता है और शिव ही वह शून्य हैं जिसमें सब कुछ फिर से समा जाता है. यानी शिव से ही सब कुछ आता है और शिव में ही चला जाता है.

आदियोगी क्यों कहलाते हैं शिव

भगवान शिव को देवता के साथ ही आदिगुरु या आदियोगी के रूप भी पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले जिन सात लोगों को वैदिक ज्ञान की प्राप्ति शिव से हुई, वो सप्त ऋषि कहलाएं. इसका अर्थ यह है कि शिव से ही योग, धर्म, कर्म और वैदिक ज्ञान का उद्गम हुआ. इसलिए शिव आदयोगी के रूप में पूजनीय हैं.

कौन हैं शिव?

हरिहर्योः प्रकृतिरेका प्रत्यभेदेन रूपभेदोज्यम्।
एकस्येव नटस्यानेक विधे भेद भेदत।

बृहधर्म पुराण के श्लोक के अनुसार- हरि और हर में कोई अंतर नहीं है. अगर कुछ अंतर है तो केवल रूप का. शिव भले ही विभिन्न रूपों में नजर आते हैं. लेकिन वास्तव में वह वही हैं जो वह हैं.

शिव पुराण के अनुसार- शिव महेश्वर माया के रचयिता हैं. यानी हर चीज से परे. शिव सर्वज्ञ, प्रकृति के गुणों से सर्वोपरि और परम सर्वोच्च ब्रह्मा हैं. शिव अपनी प्रजा के सरंक्षक, प्रशंसा योग्य और देवताओं के भी देवता यानी देवाधिदेव हैं. शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य और करूणा की मूर्ति कहा गया है, जो सहज प्रसन्न होने वाले और मनोवांछित फल प्रदान करने वाले हैं. शिव सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं.

ये भी पढ़ें:  Mahashivratri 2024: अद्भुत, विचित्र और रहस्यमय है शिव का स्वरूप, जानिए भगवान शिव के 10 प्रतीक का अर्थ और महत्व

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

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