Mahesh Navami 2022: कैसे करें महेश नवमी की पूजा, जानें तारीख, विधि, मंत्र, मुहूर्त और कथा
Mahesh Navami 2022 Puja Vidhi: देवाधिदेव महादेव की कृपा प्राप्त करने के लिए महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है.
Mahesh Navami 2022 Mantra, Vrat Katha: महादेव भगवान की पूजा करने के लिए 8 जून 2022 ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी के रूप में मनाया जाएगा. भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए महादेव के साथ-साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है. तमाम तरह के दुखों और कष्टों से मुक्ति पाने के लिए देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न किया जाता है. भीषण गर्मी में महेश नवमी का व्रत रखा जाता है. आज हम आपको महेश नवमी व्रत की विधि, मंत्र और कथा के बारे में विस्तृत रूप से बताएंगे.
महेश नवमी शुभ मुहूर्त (Mahesh Navami Shubh Muhurt)
8 जून 2022 को अष्टमी तिथि का प्रारंभ प्रातः काल 8:30 से शुरू होकर शाम को 6:58 तक रहेगा इस काल में पूजन का भरपूर लाभ प्राप्त होगा.
महेश नवमी 2022 पूजा विधि (Mahesh Navami 2022 Puja Vidhi)
प्रातः काल स्नान करके भगवान शंकर को जलाभिषेक किया जाता है. एक लोटे में जल बेलपत्र, धतूरा, फूल आदि लेकर भगवान शंकर के मंदिर में जाकर जल अर्पित करें. महेश नवमी के दिन व्रत रखा जाता है. इस व्रत में महादेव और माता पार्वती की पूजा करें. उसके बाद आरती करें.
मंत्रों का करें उच्चारण (Mahesh Navami 2022 Mantra)
- ऊं नमः शिवाय.
- ऊं पार्वतीपतये नमः
- नमो नीलकण्ठाय
महेश नवमी व्रत कथा (Mahesh Navami 2022 Vrat Katha)
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार खडगलसेन नाम के एक राजा थे. उन्हें कोई संतान नहीं हो रही थी. उन्होंने घोर तपस्या की उसके उपरांत उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई. उस पुत्र का नाम उन्होंने सुजान कंवर रखा. साथ ही साथ ऋषियों ने उन्हें यह भी बताया कि सुजान कंवर को 20 साल तक उत्तरी दिशा में नहीं जाने दिया जाएगा. धीरे-धीरे राजकुमार को शिक्षा दी गयी और युद्ध कला सिखाई गई. राजकुमार का रुझान जैन धर्म की तरफ ज्यादा था. उन्होंने जैन धर्म के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया. एक दिन राजकुमार अपने 72 सैनिकों के साथ शिकार खेलने के लिए निकल गए. जंगल में भटकते भटकते वह उत्तर दिशा की ओर मुड़ गए. सैनिकों ने उन्हें मना किया. लेकिन फिर भी वह नहीं माने.
ऋषि ने दे दिया श्राप
जंगल के बीच में एक ऋषि तपस्या कर रहे थे. इनके पहुंचने से ऋषि की तपस्या भंग हुई. जिससे राजकुमार ने ऋषि के आश्रम में हो रहे यज्ञ को अपने सैनिकों के द्वारा खंडित कर दिया. इससे क्रोधित होकर ऋषि ने राजकुमार को श्राप दे दिया. जिससे वह पत्थर के बन गए. जितने भी सिपाही उनके साथ थे. वह सभी पत्थर में तब्दील हो गए. यह समाचार जब राजधानी पहुंचा, तो सभी लोग बहुत दुखी हुए.
ऋषि से मांगी माफी
राजकुमार की पत्नी चंद्रावती ने सभी सैनिकों की पत्नियों के साथ जंगल में जाकर ऋषि से माफी मांगी और उनसे अपने पति को श्राप मुक्त करने के लिए कहा. ऋषि ने कहा मेरा श्राप मिथ्या नहीं हो सकता. लेकिन अगर आप सभी लोग महादेव और माता पार्वती की पूजा करें. तो आप के पतियों को जीवनदान मिल सकता है. इतना सुनकर राजकुमारी चंद्रावती ने सभी सैनिकों की पत्नियों के साथ मिलकर महादेव की पूजा अर्चना प्रारंभ की. देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती इस पूजा से बहुत प्रसन्न हुई. उन्होंने राजकुमार सुजान कंवर और उनके 72 सैनिकों को जीवनदान दिया.
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