Mahima Shani Dev Ki: कर्मफलदाता शनिदेव को माता छाया के विलुप्त होने की वजह और अपने पीछे रचे जा रहे षडयंत्र का पता चला तो वह आक्रोश से भर गए. उन्होंने तय किया कि उन्हें सूर्यलोक से बेदखल करने का प्रयास कर रही मां संध्या का सच अब बाहर लाना ही होगा, क्योंकि वह इंद्र के साथ मिलकर शनि को नीचे दिखाने के तमाम जतन कर रही थीं. सूर्यलोक में जब देवराज के तौर पर सूर्यदेव का अभिषेक समारोह शुरू हुआ तो सभी देव और दानव वहां जुटे. इसी बीच शनि ने वहां आकर अभिषेक रुकवा दिया. इससे आक्रोशित मां संध्या ने शनि को कोसते हुए अपने और छाया का सच पूरी सभा के सामने उगल दिया.
मां छाया के अपमान पर संध्या पर किया प्रहार
संध्या ने शनिदेव की माता छाया का अपमान करते हुए शनि को अवैध संतान तक करार दे दिया, इससे शनि आपे से बाहर हो गए और मां के अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने संध्या की कोख में लात मार दी. यह देखकर आग बबूला हुईं संध्या ने अपने तपोबल से शनि का पैर काट दिया. यह देखकर सूर्यदेव ने दखल दिया और अपनी पत्नी संध्या के छल को समझते हुए शनि का पैर दोबारा जोड़ दिया, लेकिन चेताया कि किसी देवी का श्राप या दंड व्यर्थ नहीं जा सकता है. इसलिए शनि की चाल हमेशा के लिए टेढ़ी और धीमी रहेगी. मां छाया के विलुप्त होने से आहत शनिदेव ने हमेशा के लिए सूर्यलोक छोड़ दिया.
इंद्र ने डाला दखल, देवर्षि ने किया अभिषेक
इंद्र ने देवराज का पद छिनने के बाद शनि पर सवाल उठाते हुए उनके निर्णयों को गलत ठहराते हुए एक बार फिर अपना पद और मुकुट वापस मांगा, लेकिन देवर्षि नारद ने इसका विरोध करते हुए साफ इनकार कर दिया. इसके बाद सूर्यदेव के अभिषेक का कार्यक्रम फिर शुरू हुआ तो संध्या तिलक करने के लिए सिंहासन तक पहुंचीं, लेकिन सूर्यदेव ने उन्हें यह कहते हुए दूर कर दिया कि एक पति से धोखा करने वाली पत्नी देवराज का अभिषेक करने की पात्र नहीं हो सकती है. ऐसे में सूर्यसभा का संचालन करने आए देवर्षि नारद ने नए देवराज का अभिषेक कर नए देवराज को कार्यभार सौंपा.
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