Mahima Shani Dev Ki: कर्मफलदाता शनिदेव को सूर्यदेव की पत्नी अपने फायदे के लिए उपयोग करती रहीं, जबकि शनि अपनी माता छाया के विलुप्त होने की बात से अनजान थे, लेकिन जब इंद्र ने उन्हें सच बताया तो खुद शनिदेव को भी मां सध्या के बदले व्यवहार का आभास हुआ. इसके चलते वह हकीकत जानने के लिए संध्या को लेकर उन जगहों पर गए, जिनका सिर्फ शनि या विलुप्त हो चुकी माता छाया को ज्ञान था. शनि के इन प्रयासों का पता चलने पर भगवान विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संध्या को समझाया कि अगर शनि उनके पास अधिक समय तक रहा तो संध्या को यह भारी पड़ सकता था. मगर संध्या अपना सच छुपाए रखने के लिए शनि को खुद को दूर करने के लिए राजी नहीं हुईं, उल्टे सही सलाह देने वाले पिता भगवान विश्वकर्मा पर शक्ति चला दी, मगर अचानक शनि ने उन्हें बचा लिया. मां का अपने पिता पर हमला करना देखकर शनिदेव भड़क उठे, लेकिन विश्वकर्मा ने बात टाल दी.
सूर्य के देवराज बनने पर लगा अड़ंगा
इंद्र के देवराज पद से निष्कासित होने के बाद सूर्यदेव का अभिषेक होना था, जिसके लिए खुद भावी देवरानी या संध्या सभा में पहुंचीं तभी शनिदेव ने आकर इसे रुकवा दिया. इससे नाराज संध्या आखिरकार अपने असली रंग में आ गईं और शनि को भलाबुरा कहना शुरू कर दिया, उन्होंने शनि को कुरुप और अवैध संतान करार देते हुए जीभर का कोसा, साथ ही बताया कि वह नहीं बल्कि उनकी परछाई छाया थी, जो लुप्त हो चुकी हैं, यह कहकर संध्या ने शनि को सूर्यलोक से धकेल दिया.
माता के अपमान पर संध्या की कोख में लात मारी
शनिदेव माता छाया का बार-बार अपमान करने पर संध्या की कोख में लात मार दी. इस पर गुस्साई संध्या ने चक्र चलाकर शनि को एक पैर काट दिया. यह देखकर सभा में सभी हैरान रह गए. यह देखकर सूर्यदेव को दखल देने पड़ा, उन्होंने शनिदेव का पक्ष लेते हुए संध्या पर पति को धोखा देने का आरोप लगाते हुए शनि को सध्या के असर से मुक्त करते हुए शनि का पैर दोबारा जोड़ दिया. इस दौरान सूर्यदेव ने कहा कि उन्होंने अपने तप शनि को दूसरा पैर तो दे दिया है, लेकिन वह दोबारा सही से नहीं चल पाएंगे और चाल धीमी रह जाएगी.