Mahima Shani dev Ki: शनिदेव माता छाया के विलुप्त होने के बाद पूरे घटनाक्रम से अनजान होने के चलते संध्या के प्रति अनुराग से भरे हुए थे. भगवान विश्वकर्मा ने संध्या को चेताया कि अगर वह शनि से दूर रहेंगी तो वह खुद को सुरक्षित रख सकेंगी, मगर देवरानी बनने की तैयारी कर रही संध्या ने पिता का आग्रह ठुकराते हुए उन्हें इस मामले से दूर हट जाने की चेतावनी दे डाली. नाराज भगवान विश्वकर्मा ने उन्हें पिता की हैसियत से फटकार लगाई तो आक्रोशित संध्या ने अपने ही पिता पर शक्ति से हमला कर दिया. मगर ऐन वक्त शनिदेव आ गए तो विश्वकर्माजी की जान बच गई. मां के कृत्य से नाराज शनि ने उन्हें नाना विश्वकर्मा के समझाने पर कुछ नहीं कहा.


सच्चाई खुलने पर शनि के काटे 
अगले दिन देवराज की जिम्मेदारी उठाने जा रहे सूर्यदेव के अभिषेक में पहुंचे शनि ने पूजा रुकवा दी, इससे भड़की मां संध्या फिर बेकाबू हो गईं और इस बार उन्होंने खुद अपनी और छाया की सच्चाई बयां करते हुए शनिदेव को खूब कोसा. उन्होंने छाया के लिए इतने कटु शब्द और आरोप कहे, जिनसे आहत होकर शनिदेव ने उनकी कोख पर लात मार दी. बदले में गुस्से से भरी संध्या ने अपनी सभी शक्तियां बटोर कर शनि का पैर काट दिया. यह देखकर देव और दानवों में हाहाकार मच गया.


विश्वकर्मा ने भी सूर्य को दिया उलाहना


सभी सूर्यदेव की सभा में हो रहे अन्याय को लेकर सवाल उठाने लगे, खुद विश्वकर्मा ने भी सूर्य को उलाहना दिया तो सूर्यदेव ने उन्हें धोखा देने वाली पत्नी संध्या को तिरस्कृत करते हुए अब तक शनि से चल रही अदावत खत्म कर उनके हाथ-पैर जोड़ दिए, लेकिन यह भी साफ किया कि संध्या का देवी के तौर दिया गया दंड खाली नहीं जाएगा. इसके चलते शनि की चाल धीमी और टेढ़ी रहेगी. यह सूर्यदेव का बतौर देवराज पहला न्याय था, जिसके पात्र खुद उनके पुत्र शनि बने. सूर्यदेव के न्याय को हर किसी ने सराहा, जिसके बाद खुद शनिदेव ने पिता को ग्रहण के घाव से मुक्त कर दिया.


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