Mahima Shani dev Ki: कर्मफलदाता शनिदेव पृथ्वी लोक पर राक्षसों के हमले में मारे गए भाई यम की मृत्यु से बेहद आहत थे. धरती पर असुरों का संहार करने के बाद यम का शव लेकर सूर्यलोक लौटे शनिदेव को पिता सूर्यदेव की प्रताड़ना एक बार फिर झेलनी पड़ी. ऐसे में गुस्साए शनिदेव ने दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास जाकर उन्हें ललकारा. इस पर शुक्राचार्य ने खुलासा किया कि उनके तप में रहने के दौरान पृथ्वी पर आक्रमण के लिए दैत्य सेना पति व्यक्तगण को गुमराह किया गया. इसके लिए खुद देवराज इंद्र पाताल लोक आए और व्यक्तगण को धरती पर दैत्यों के साम्राज्य का लालच देते हुए मनु, सतरूपा समेत यम को मार डालने के लिए भेज दिया. सत्ता के लालच में अंधा होकर व्यक्तगण पूरी राक्षस सेना के साथ धरती के लिए कूच कर गया. जहां उसके मायावी बाण की चपेट में आकर यम की जान चली गई. मान्यता है कि दैत्यगुरु के इस खुलासे पर शनिदेव को भरोसा नहीं हुआ तो शुक्रचार्य ने वादा कि उनकी बात सच नहीं हुई तो वह शनि के सामने नहीं आएंगे और राक्षस पूरी उम्र के लिए अंधेरे में रहेंगे.
व्यक्तगण को मिली कर्मों की सजा, शनि ने मौत के घाट उतारा
दैत्य सेनापति के अचानक गायब होने से हैरान शुक्राचार्य तप कर लौटे तो उन्हें सत्य का ज्ञान हो गया. फिर शुक्राचार्य को सजा देने के लिए पाताल आए शनिदेव ने बताया कि पृथ्वी पर ही वह व्यक्तगण को उसके कर्माें की सजा मौत के घाट उतारकर दे चुका हूं, अब सिर्फ उस व्यक्ति की तलाश है, जिसने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया था. ऐसे में शुक्राचार्य ने बताया कि दानव सेनापति को इंद्र ने उकसाया, ताकि उसके जरिए यम और मनु-सतरूपा को मारकर एक बार फिर राक्षसों के सिर आरोप लगाया जा सके.
शनिदेव को अधीन करने के लिए इंद्र ने रची साजिश
देवराज इंद्र ने कर्मफलदाता शनि को देवपुत्र होने के नाते अपने कब्जे में करने का प्रयास किया, इसके लिए वो तमाम प्रयास करते रहे. इस बीच पृथ्वी पर कब्जे के लिए उन्होंने व्यक्तगण को उकसा दिया, लेकिन धरती पर युद्ध के दौरान शनिदेव ने राक्षसों का संहार कर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया.
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