Mahima Shani dev Ki: कर्मफलदाता शनिदेव को अपने अधीन करने के लिए आतुर इंद्र देव की हर चाल नाकाम रही थी. यहां तक कि माता संध्या का अपहरण कराने के लिए दोषी करार दिए जाने के बाद उनका देवराज का पद और इंद्रलोक का सिंहासन भी छिन गया. अपनी दुगर्ति के लिए शनि को जिम्मेदार मानते हुए इंद्र ने एक अखंड प्रतिज्ञा कर डाली. इंद्र ने गुरु बृहस्पति की मौजूदगी में शनि के जीवन में  दुखों का अम्बार लगाकर उन्हें अपने आगे झुका देने की सौगंध ले डाली. यह सुनकर गुरु बृहस्पति ने इंद्र को समझाने का प्रयास किया कि शनि से शत्रुता कहीं खुद इंद्र का ही सर्वनाश न कर दे, यह सुनकर बौखलाए इंद्र ने गुरु बृहस्पति से भी अभद्रता कर दी. इंद्र ने उन्हें सूर्यलोक की सभा में देवराज का पक्ष नहीं लेने का दोषी बताते हुए तत्काल वहां से चले जाने को कहा. यह सुनकर देवगुरु वहां से चले गए.


जंगल में शनि को बताई संध्या की सच्चाई
एक दिन माता संध्या के साथ जंगल में लौटे शनिदेव के पीछे इंद्र भी वहां पहुंच गए. मगर अपनी पुरानी यादों पर बात करते हुए शनि ने संध्या से कुछ सवाल किए तो वह सकपका गईं, ऐसे में एक बार फिर भगवान विश्वकर्मा वहां आए और बहाने से संध्या को लेकर सूर्यलोक लौट आए. विश्वकर्मा ने संध्या को समझाने का प्रयास किया कि शनिदेव की माता छाया के लुप्त होने के बाद अब संध्या का शनि के साथ हमेशा रहना ठीक नहीं, अन्यथा किसी दिन शनि को सच पता चला कि उनकी मां संध्या नहीं बल्कि छाया थीं तो सृष्टि में प्रलय आ जाएगा. मगर संध्या ने यह करने से इनकार कर दिया.


महादेव ने विश्वकर्मा को सौंपी जिम्मेदारी
शनिदेव की माता छाया के लुप्त होने और संध्या का सच खुलने के बाद शनिदेव के आक्रोश से सृष्टि को बचाने के लिए महादेव भी चिंतित हो उठे. उन्होंने इंद्र को चेतावनी देते हुए भगवान विश्वकर्मा को यह जिम्मेदारी सौंपी की कि किसी भी रूप में शनिदेव को यह ज्ञात न होने पाए कि वह संध्या के बजाय छाया पुत्र थे, अन्यथा उनके आक्रोश और प्रकोप से सृष्टि में जो तांडव आएगा, उसका स्वयं महादेव भी अनुमान नहीं लगा सकेंगे. मगर इंद्र के कुचक्रों और संध्या के लोभ के चलते यह सज जल्द ही शनिदेव के सामने आ गया, जिसने शनिदेव को पूरी तरह बदल डाला.


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