Mahima Shani dev Ki: महादेव शिव शंकर से माता छाया का जीवनदान लेकर सूर्यलोक लौटे शनिदेव अपनी माता के दो तरह के व्यवहार से थोड़ा शंकित थे. कभी उनकी मां उन्हें पूरे प्रेम से स्नेह करती तो कभी सामान्य शिष्टाचार भी नहीं. मगर इसे दरकिनार कर शनि माता को बंधक बनाने वाले व्यक्तगण की करतूतों को उजागकर करने शुक्राचार्य के पास पाताल चले गए. लेकिन यहां संध्या छाया को सूर्यलोक से बेदखल करने के लिए एक गहरी चाल चल बैठीं.


माता संध्या ने छाया को चेताया कि अगर वह खुद यहां से नहीं गई तो खुद संध्या सूर्यलोक से छाया का सच बयां कर देंगी. इससे छाया सहम गईं, क्योंकि उन्हें पता था कि अगर शनिदेव को पता चला कि संध्या न हो कर उनकी माता छाया हैं तो वह सृष्टि को संकट में डाल देंगे. एक दिन यही सोचते हुए छाया परेशान थीं, तभी संध्या आ गईं तो सूर्यदेव के सामने उन्हें ले जाने लगीं, लेकिन छाया ने तय किया कि अब जबकि शनि कर्मफलदाता बन चुके हैं और दुनिया को इंसाफ दिलाने की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं तो उन्होंने भगवान विश्वकर्मा और संध्या के सामने ही खुद को खत्म कर लिया.


संध्या को ही मां मानते थे शनि, पहेली ही रह गईं छाया
शनिदेव को जन्म के बाद लंबे समय तक पता नहीं था कि वह सूर्यलोक की स्वामिनी संध्या के पुत्र न होने उनकी छाया के बेटे हैं. ऐसे में उनका माता संध्या के प्रति अनुराग बना रहा. मगर जब छाया ने खुद को खत्म किया तो संध्या खुद आवाक रह गई. इस तरह बेटे शनि के लिए माता छाया हमेशा के लिए पहली ही बनी रह गईं. पौराणिक कथाओं के अनुसार समस्य देवलोक में यह सच्चाई सिर्फ इंद्र और भगवान विश्वकर्मा ही जान सकें, लेकिन महादेव के आदेश पर उन्होंने इसका किसी से भी खुलासा नहीं किया.


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