Mahima Shani Dev Ki: शनिदेव के लिए भगवान विश्वकर्मा बने संजीवनी, इंद्र की चाल को यूं कराया असफल, पढ़ें कथा
Mahima Shani dev Ki: शनिदेव के प्रति शत्रुता का भाव रखने वाले इंद्र ने उन्हें सूर्यलोक से बहिष्कृत कराने के लिए सभी दांव चले, लेकिन हर बार भगवान विश्वकर्मा शनि के लिए संजीवनी बनते रहे. पढ़ें कथा.
Mahima Shani dev Ki: शनिदेव को अपने अधीन करने के लिए आतुर इंद्र बार-बार असफल हुए. इससे बौखलाए देवराज ने एक दिन शनि को सूर्यलोक से बहिष्कृत कराने के लिए सूर्यदेव की पत्नी संध्या के साथ साजिश रची. संध्या खुद भी शनिदेव को बेदखल करना चाहती थीं, इसलिए वह इंद्र की बातों में आ गईं. इधर, माता के अपहरण के दोषी को खोज रहे शनिदेव को इंद्र ने चुनौती दे दी कि वह उन्हें दोषी साबित कर दें, अन्यथा खुद पृथ्वीलोक के लिए बहिष्कृत हो जाएं. इसका निर्णय करने के लिए सूर्यलोक में फिर एक बार सभा बुलाई गई. इसमें देवर्षि नारद समेत दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी बुलाए गएं. सभा के दौरान शनिदेव ने माता संध्या से पूछा कि मां आप बताएं कि आपका अपहरण किसने कराया था, लेकिन संध्या खामोश रह गईं. ऐसे में सूर्यदेव ने उनसे पूछा कि जब वह पहले ही उन्हें अपहरण के लिए इंद्र को दोषी बता चुकी हैं तो आखिर सभा में क्यों सच नहीं बोल रहीं. यह सुनकर संध्या बिफर पड़ीं और इंद्र की साजिश के अनुसार दृढ़ता से खुद के अपहरण की बात नकार दी.
शनिदेव ने मानी गलती, विश्वकर्मा ने दिया दखल
माता संध्या के भरी सभा में इंद्र को अपहरण का दोषी नहीं बताने पर शनिदेव मायूस हो गए, क्योंकि बीती रात ही मां ने उनसे सारी बातें कहीं थीं और खुद इंद्र- राक्षण सेनापति व्यक्तगण ने अपहरण के लिए इंद्र को दोषी बताया था. मगर सभा में माता का जवाब सुनकर शनिदेव ने इसे स्वीकार कर लिया. इतने में भगवान विश्वकर्मा ने बीच में आकर संध्या के सामने एक शर्त रख दी.
विश्वकर्मा ने कहा कि संध्या सच नहीं बोल रही हैं, ऐसा उनके व्यवहार और हावभाव से स्पष्ट हो रहा है. ऐसे में उन्हें अपनी संतान की सौगंध लेकर यह बात कहनी चाहिए. यह सुनकर संध्या ने शनि के सिर पर हाथ रखकर सौगंध खा ली, मगर विश्वकर्मा ने फिर आपत्ति जताई और कहा कि वह अपने दोनों पुत्रों शनि और यम की सौगंध खाएं. क्योंकि यह सौगंध अगर झूठी हुई तो वह महादेव के श्राप से अपनी दोनों संतानों को खो बैठेंगी. इतना सुनते ही संध्या द्रवित हो उठीं और इंद्र की साजिश का खुलासा कर दिया. यह सुनकर देवर्षि नारद ने इंद्र को धिक्कारते हुए उनका देवराज पद छीनने का ऐलान कर दिया.
सूर्यदेव ने फिर मानी शनिदेव की बात
भले ही ग्रहण लगाने के चलते सूर्यदेव शनि से रूष्ट रहते थे, लेकिन मां के प्रति उनके प्रेम की भावना ने उन्हें भी प्रसन्न किया. सूर्यसभा में इंद्र की साजिश का पर्दाफाश करने पर सूर्य ने इंद्र को भस्म कर देने की चेतावनी दी तो शनि का धन्यवाद भी जताया.
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