Mahima Shanidev Ki: देवराज इंद्र शनिदेव के कर्मफलदाता होने की बात से बेहद खुश थे क्योंकि शनि देवपुत्र थे. ऐसे में उनके न्यायधिकारी होने की सूरत में देवताओं का ही कल्याण के आशान्वित थे. मगर दैत्यों ने इससे इनकार किया तो खुद देवराज ने देवविश्वकर्मा के घर गए शनि पर हमला कराने के लिए शुक्राचार्य से परम शक्तिशाली दैत्य उत्पन्न करने को कहा. जब ये बात देवगुरु वृहस्पति को पता चली तो उन्होंने इंद्र को तिरस्कृत करते हुए ऐसा नहीं करने की चेतावनी दी. मगर इंद्र ने उनके आग्रह को ठुकरा दिया.
चक्रवात ने तहसनहस किया महल
शुक्राचार्य ने इंद्र के कहने पर यज्ञ ने महादानव चक्रवात को उत्पन्न किया, जो किसी को भी तिनके की तरह उड़ा सकता था. एक पात्र में बंद कर शुक्राचार्य उसे लेकर देवलोक पहुंचे, जब इंद्र के इशारे पर उन्होंने चक्रवात को देवविश्वकर्मा के महल पर छोड़ दिया. देखते ही देखते तूफान ने पूरे महल और प्रयोगशाला को तहस-नहस कर डाला. यह देखकर महादेव भी अत्यंत क्रोधित हुए और त्रिशूल चलाकर इंद्र को खत्म करने चल दिए, लेकिन श्रीहरि के आग्रह पर रुक गए.
शनि को खुद ग्रहण करना था दिव्य दंड
श्रीहरि ने बताया कि कर्मफलदाता के दंड तक पहुंचने के बाद न्यायधिकारी के तौर पर स्थापित होने का अवसर है, जिसे शनिदेव को खुद ग्रहण करना होगा. वहीं चक्रवात का सर्वनाश करने के लिए दिव्यदंड उठाएंगे. इधर, चक्रवात में मां छाया को समाते देखकर शनिदेव ने आखिरकार दिव्यदंड उठाया तो मानो वह किसी तिनके जैसा हो. एक ही वार में चक्रवात समाप्त हो गया और मां छाया सकुशल बचा ली गईं.
इन्हें पढ़ें