Mahima Shanidev Ki: शनिदेव (Shani dev) समय के साथ अंत के निकट जा रही माता छाया के प्राण बचाने के लिए नियति को बदलने का संकल्प ले चुके थे. वह तमाम बाधाओं के बीच कैलास पर महादेव से मिलने पहुंच गए, लेकिन इस बीच सूर्यमहल में सूर्यपत्नी संध्या तप पूरा कर लौट चुकी थीं. जब उन्हें सूर्यपुत्र शनि के बारे में पता चला तो वह अपनी छाया पर भड़क उठीं, उन्होंने छाया पर अपने पति और अधिकार छीनने का आरोप लगाया, साथ ही शनि को भी सूर्यलोक (Suryadev) में वापस नहीं आने देने का ऐलान कर दिया.
सूर्य पत्नी संध्या अपने पिता विश्वकर्मा से भी आक्रोशित थीं क्योंकि उन्होंने संध्या और छाया को एक साथ आने से रोकने के लिए संध्या को अपने महल में बंधक बना लिया था. संध्या ने छाया को तत्काल विलुप्त हो जाने का आदेश सुनाया, लेकिन सांसें लेने में असमर्थ हो रही छाया ने सिर्फ एक बार पुत्र शनि को देख लेने की इच्छा जताई तो संध्या आपे से बाहर हो गईं. वह जानती थीं कि जिस छाया का अंत कर वह एक बार फिर सूर्यलोक की स्वामिनी बनना चाह रही थीं, उनका पुत्र शनि उनमें दोबारा प्राण फूंकने के लिए कैलास की अतिकठिन यात्रा पूरी कर महादेव तक पहुंच चुका था. इससे घबराई संध्या ने शनिदेव को माता छाया के प्राण बचाने में असफल हो जाने का श्राप दे डाला.
विश्वकर्मा ने पुत्री संध्या को दी थी चेतावनी
सूर्यलोक लौटने के बाद छाया को मिटा देने के आतुर संध्या को बंधक बनाने के बाद पिता विश्वकर्मा ने चेतावनी दी थी. उन्होंने कहा कि तप पर जाने से पहले पति को नहीं बताने और अपनी छाया छोड़ने का कृत्य सूर्यदेव को अंधकार में रखने वाला कदम था, ऐसे में छाया ने उनके सभी उत्तरदायित्व निभाए, लेकिन अब जब शनि की मां बन चुकी छाया के प्राण बचाने का समय आया तो संध्या छाया का धन्यवाद करने के बजाय उल्टे क्रूर व्यवहार कर रही हैं. उन्होंने चेताया कि अगर संध्या ने छाया या शनि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया तो वह संध्या के कृत्य की सूचना खुद सूर्यदेव को दे देंगे.
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