Mahima Shanidev Ki: शनि कोई और नहीं बल्कि सूर्यदेव (SuryaDev) के पुत्र हैं. यह पता चला तो शुक्राचार्य (Shukracharya) को उनके न्यायधिकारी होने का शक पैदा हो गया. महादेव की भविष्यवाणी के मुताबिक न्यायधिकारी तटस्थ होना था. ऐसे में देवराज इंद्र (Devraj Indra) के कहने पर उन्होंने सत्यता परखने का फैसला किया. पूरी योजना के तहत विश्वकर्मा के जरिए उन्हें दिव्यदंड तक पहुंचाया गया, लेकिन बड़ा सवाल था कि शनि दिव्यदंड उठाने में सफल होंगे, तभी कर्मफलदाता के तौर पर साबित हो सकेंगे, लेकिन उन्हें दिव्यदंड उठाने की जरूरत क्यों होगी, यह तभी हो सकता था, जब उनकी मां पर कोई संकट आए.
इंद्र ने शुक्राचार्य के साथ बनाई योजना
सूर्यपुत्र का परीक्षण कोई देवता करें, ऐसे में सूर्यदेव के गुस्से को सहने से घबराए देवों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी थी. ऐसे में देवराज इंद्र को एक युक्ति सूझी. उन्होंने सोचा कि कोई देवपुत्र दानवों के ही संहार के लिए शस्त्र उठा सकता है. ऐसे में इंद्र ने पाताल जाकर अपने परमशत्रु दैत्य गुरु शुक्राचार्य से मदद मांगी. शुक्राचार्य से एक ऐसा दानव उत्पन्न करने को कहा, जो न सिर्फ शनिदेव की मां छाया को संकट में पहुंचा दे बल्कि पूरे ब्रम्हांड में खलबली मचा दे. ऐसे में मां को बचाने के लिए अगर शनि दिव्यदंड उठाते हैं तो सच्चाई का पता चल जाएगा.
यज्ञ से निकला चक्रवात
शुक्राचार्य ने यज्ञ कर महादानव चक्रवात उत्पन्न किया, जो पूरे इलाके को तहसनहस कर सकता था. इंद्र के कहने पर शुक्राचार्य ने इसे देवविश्वकर्मा के महल पर छोड़ दिया, जिसकी चपेट में आकर मां छाया विलीन होने लगीं. यह देखकर शनिदेव ने उन्हें बचाने का प्रयास किया, लेकिन प्रयास नाकाफी होने लगे और पूरा विश्वकर्मा महल चक्रवात का शिकार बनने लगा. ऐसे में शनिदेव ने प्रयोगशाला में रखे दिव्यदंड को उठाकर चक्रवात को खत्म कर दिया और मां की जान बचा ली. यह देखकर देवता और दानव हैरान रह गए.
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