Mahima Shani Dev Ki: शनिदेव (Shani Dev) की माता छाया सूर्यदेव की पत्नी संध्या की परछाई थीं, यह बात उनके अलावा सिर्फ छाया ही जानती थीं. लंबे समय तक तप के लिए गईं संध्या की अनुपस्थिति में छाया और सूर्यदेव से शनिदेव का जन्म हुआ, लेकिन छाया की संतान होने के चलते उनके श्याम वर्ण और निष्तेज होने पर सूर्यदेव ने उनका परित्याग कर दिया था. हालांकि माता को यह छूट दी कि वह जंगल में शनि से मिलने के लिए हर रात जा सकेंगी और सूर्योदय से पहले सूर्यमहल आ जाएंगी. यह क्रम बरसों तक चलता रहा, इस बीच शनिदेव कई बार दैत्यों का संहार कर माता को अचंभित कर चुके थे.
इधर, संध्या के पिता भगवान विश्वकर्मा को महादेव ने एक दिव्यदंड तैयार करने के लिए कहा, जो सृष्टि के न्यायकर्ता ही उठा सकेंगे. ऐसे में जब एक बार माता छाया के साथ शनिदेव नाना विश्वकर्मा के घर आए तो चक्रवात ने हमला कर दिया. माता छाया इसकी चपेट में आ गईं, जिन्हें बचाने के लिए शनि ने दिव्यदंड उठाकर चक्रवात का नाश कर दिया. यह देखकर विश्वकर्मा को यकीन हो गया कि दिव्यदंड उठाने वाले शनि ही कर्मफलदाता हैं, जिनका इंतजार देव-दानव सभी कर रहे हैं.
महादेव से माता के प्राण बचाने के बाद खुली सच्चाई
माता छाया संध्या की परछाई होने के चलते संध्या के सूर्यलोक लौटने के बाद विलुप्त हो जानी थीं. इस क्रम में वह चक्रवात के हमले के बाद घायल होकर विचित्र घावों का शिकार बन गईं, जिसका उपचार करने में खुद विश्वकर्मा और सूर्यदेव भी असफल हो गए तो शनि ने खुद महादेव के पास कैलास जाकर माता के लिए जीवनदान मांगा. अपनी परीक्षा में सफल होने के बाद लौटे शनिदेव की लगातार चमत्कारिक सफलताओं को देखकर माता छाया भी अचंभित हो गईं, ऐसे में एक दिन उन्होंने भगवान विश्वकर्मा से शनि की पूरी सच्चाई पूछ ली. मजबूर होकर विश्वकर्मा ने महादेव की न बताने की शर्त का हवाला देकर कर्मफलदाता का सच बता दिया. यह सुनकर माता छाया खुशी से निहाल हो गईं. इसके बाद उन्होंने शनिदेव को न्याय के लिए हर कदम पर सहयोग किया.
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