Mahima Shanidev Ki: शनि देव (Shani dev) को मां का प्रति सम्मान, प्रेम और कृतज्ञता से भरा व्यवहार रहा तो वहीं पिता से उन्हें जन्म लेते ही कटुता, तिरस्कार का व्यवहार झेलना पड़ा. ऐसे में जब सूर्यदेव के तेज से मां छाया मूर्छित हुईं तो शनिदेव ने भरी सभा पिता को गुस्से में आकर ग्रहण लगा दिया. इस बार पति को बचाने के लिए खुद मां छाया भी मौजूद नहीं थी वहीं बाकी देव इतना साहस नहीं जुटा सके कि वह शनि देव को शांत कराने का प्रयास कर सकें. ऐसे सृष्टि पर आए संकट को देखते हुए खुद महादेव को कैलाश छोड़कर सूर्यलोक पहुंचना पड़ा.


शनि देव ने मानी गलती, खुद सजा को प्रस्तुत हुए


शनि देव के भाई यम की मृत्यु पृथ्वी पर देव असुर संग्राम में हुई थी, यह पहला ऐसा युद्ध था, जिसमें दैत्यों ने अपने ही गुरु शुक्राचार्य की गैरमौजदूगी का फायदा उठाकर धरती पर कब्जा करने के लिए किया था. इस दौरान वह यम और पहले मानव मनु और सतरूपा को मारने का प्रयास कर रहे थे. ऐसे में शनिदेव ने कर्तव्य को प्राथमिकता देते हुए यम को बचाने के बजाय मनु और सतरूपा को बचाया, जिसके लिए उन्हें पिता का कोप सहना पड़ा. इससे पहले उन्होंने खुद को यम की मृत्यु का दोषी मानते हुए सजा के लिए प्रस्तुत कर दिया.

मां के अपमान पर सूर्य को महादेव ने बचाया
सूर्य सभा में समस्त देवों की मौजूदगी में सूर्यदेव ने शनि को भस्म करने के लिए शक्ति चलाई तो शनि देव की माता छाया वहां आ गईं और उन्हें शक्ति लग जाने से वे मूर्छित होकर गिर गईं. मां को दयनीय हालत में देखकर शनि एक बार फिर पिता सूर्य पर क्रोधित हो उठे और मां पर शक्ति चलाने के लिए पिता पर ग्रहण लगा दिया. देखते देखते सूर्य की किरणें मद्धिम होने लगीं और सारे संसार में अंधेरा छाने लगा. सृष्टि का सर्वनाश होता देखकर महादेव वहां प्रकट हुए और शनि को फटकार कर ग्रहण रोकने को कहा, लेकिन शनि मां पर हमले से इतना व्यथित थे, कि उन्होंने महादेव के आदेश को भी नहीं सुना, तभी अचानक मां छाया को होश आ गया और उन्होंने शनि के समझाबुझाकर शांत कराया, तब जाकर सूर्यदेव ग्रहण मुक्त हो सके.


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