नई दिल्ली: दान और मोक्ष का पर्व है मकर संक्रांति. लेकिन इस पर्व को हम एक ओर नाम से भी जानते हैं. मकर संक्रांति को खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है. इस दिन घरों में खिचड़ी बनाने की परंपरा है. चावल, दाल और मौसमी सब्जियों के साथ मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाई जाती है.


बाबा गोरखनाथ ने शुरू की थी खिचड़ी की परंपरा


13 वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी जब दिल्ली के सिहांसन पर बैठा तो उसने उत्तर भारत पर अधिकार जमाने के लिए आक्रमण कर दिया. खिलजी की विशाल सेना को रोकने के लिए बाबा गोरखनाथ और उनके भक्तों ने मोर्चा संभाल लिया. बाबा गोरखनाथ को शिव का अवतार माना जाता है. बाबा गोरखनाथ और उनके भक्तों ने खिलजी की विशाल सेना से बराबर लोहा लिया.


खिलजी की सेना से ये भक्त भूखे प्यासे लड़ते रहे. युद्ध इतना जबरदस्त था कि बाबा गोरखनाथ के भक्तों को भोजन बनाने का समय ही नहीं मिलता. इस कारण भक्त कमजोर होने लगे और रणभूमि में परास्त होने लगें. स्थिति को देखते हुए तब बाबा गोरखनाथ ने चावल, दाल और मौसमी सब्जियों की मदद से एक पकवान तैयार किया. जिसे उन्होंने नाम दिया खिचड़ी.


खिचड़ी खाते ही आ गई ऊर्जा


इस बनाने और पकाने में समय भी अधिक नहीं लगता था. इसलिए बाबा के भक्त खिचड़ी बनाते और खाते. इससे खाने से उनके शरीर में ऊर्जा आ जाती है और दुश्मनों पर कहर बनकर टूट पड़ते. खिचड़ी खाने में स्वादिष्ट होने के साथ साथ पौष्टिक भी होती है. जिस कारण भक्तों को रणभूमि में युद्ध करते समय कमजोरी भी महसूस नहीं होती है. बाबा और भक्तों का यह उत्साह देख खिलजी की विशाल सेना घबरा गई. तभी से इस पर्व पर खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा की शुरूआत हुई.


गोरखपुर में लगता है मेला


नाथ योगियों में मकर संक्रांति का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाने की परंपरा है. खिचड़ी को इस दिन प्रसाद के तौर ग्रहण किया जाता है. मकर संक्रांति के दिन गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ मंदिर की ओर से खिचड़ी मेला भी आयोजित किया जाता है. इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. इस दिन साधु संतों को खिचड़ी का दान और गर्म वस्त्रों का दान भी किया जाता है.