Mangal Stotra: मंगल दोष से मुक्ति के लिए ये सरल उपाय है बहुत कारगार, मंगल स्तोत्र का करें पाठ
Mangal Stotra On Tuesday: ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति माना जाता है. मान्यता है कि मंगल ग्रह युद्ध, वीरता, शौर्य और उत्साह का ग्रह है.
Mangal Stotra On Tuesday: ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह (Mangal Grah) को ग्रहों का सेनापति माना जाता है. मान्यता है कि मंगल ग्रह युद्ध, वीरता, शौर्य और उत्साह का ग्रह है. कहते हैं कि जिन लोगों की कुंडली में मंगल ग्रह (Mangal Grah In Kundali) उच्च भाव में होता है, वो हर क्षेत्र में जोश और उत्साह के साथ का कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं. इसके अलावा जिनकी कुंडली में मंगल ग्रह निमन भाग में होता है, उन जातकों में आत्मविश्वास की कमी पाई जाती है और इसी कारण वो सही दिशा और शक्ति से प्रयास नहीं कर पाते. ऐसे लोगों के लिए सफलता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है.
कुंडली में मौजूद मंगल दोष को दूर करने के लिए मंगलवार के दिन मंगल स्तोत्र का पाठ करने की सलाह दी जाती है. ज्योतिषियों के अनुसार मंगलवार का दिन मंगल ग्रह से संबंधित माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक मंगल ग्रह का व्रत और पूजन करने से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है. कहते हैं कि जिन जातकों की कुंडली में मंगल दोष हो, उन्हें मंगलवार के दिन हनुमान जी और मंगल ग्रह का पूजन करना चाहिए. मंगलवार के दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें. लाल रंग की वस्तु या मिठाई का दान करें. इसके साथ ही, पूजन के दौरान मंगल स्तोत्र का पाठ करें. ऐसा करने से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है.
मंगल स्तोत्र (Mangal Stotra)
रक्ताम्बरो रक्तवपु: किरीटी चतुर्मुखो मेघगदी गदाधृक्। धरासुत: शक्तिधरश्र्वशूली सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त: ।।1।।
ॐमंगलो भूमिपुत्रश्र्व ऋणहर्ता धनप्रद:। स्थिरात्मज: महाकाय: सर्वकामार्थसाधक: ।।2।।
लोहितो लोहिताऽगश्र्व सामगानां कृपाकर:। धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ।।3।।
अऽगारकोतिबलवानपि यो ग्रहाणंस्वेदोदृवस्त्रिनयनस्य पिनाकपाणे: । आरक्तचन्दनसुशीतलवारिणायोप्यभ्यचितोऽथ विपलां प्रददातिसिद्धिम् ।।4।।
भौमो धरात्मज इति प्रथितः प्रथिव्यांदुःखापहो दुरितशोकसमस्तहर्ता। न्रणाम्रणं हरित तान्धनिन: प्रकुर्याध: पूजित: सकलमंगलवासरेषु ।।5।।
एकेन हस्तेन गदां विभर्ति त्रिशूलमन्येन ऋजुकमेण। शक्तिं सदान्येन वरंददाति चतुर्भुजो मंगलमादधातु ।।6।।
यो मंगलमादधाति मध्यग्रहो यच्छति वांछितार्थम्। धर्मार्थकामादिसुखं प्रभुत्वं कलत्र पुत्रैर्न कदा वियोग: ।।7।।
कनकमयशरीरतेजसा दुर्निरीक्ष्यो हुतवह समकान्तिर्मालवे लब्धजन्मा। अवनिजतनमेषु श्रूयते य: पुराणो दिशतु मम विभूतिं भूमिज: सप्रभाव: ।।8।।
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