भारत में प्रकृति चक्र अत्यंत महत्वपूर्ण है. आग उगलते सूरज की तपिश से सूखी धरती की प्यास बुझाने मानसून आते हैं. घर में सुख सौख्य समृद्धि आती है. प्रकृति में शीतलता और रस बढ़ता है. हरियाली से चहुंओर सौंदर्य बिखर जाता है.


मानसून महालक्ष्मी की कृपा से आता है. माता महालक्ष्मी को सागर रत्ना अर्थात् सागर की पुत्री पुकारा जाता है. भगवान विष्णु सृष्टि के पालक हैं. सृष्टी के पालन और प्यासी धरती की शीतलता प्रदान करने लक्ष्मीजी मानसून को उत्पन्न करती हैं. लक्ष्मी जी स्वयं सागर में भगवान विष्णु के साथ सदा विराजमान रहती हैं.


बारिश से प्राप्त जल को द्रव्य कहा जाता है. यह धन का प्रतीक है. लक्ष्मी जी धन की देवी हैं. बारिश के जल को यथासंभव संग्रहित कर लक्ष्मीजी को प्रसन्न किया जा सकता है. जल का अपव्यय न करना भी लक्ष्मीजी की प्रसन्नता बढ़ाता है. पेड़ मानसून को आकर्षित करते हैं. बारिश के प्रेरित करते हैंं. मानसून के मौसन में पेड़ लगाने वालों पर भी मां की विशेष कृपा बनी रहती है.


मानसून से पहले शहर गांव की गलियां और जल निकासी की सुविधाओं को दुरुस्त किया जाना भी देवी मां को हर्षित करता है. जल निकासी जितनी स्वच्छ और प्रवाह युक्त होगी जल उतना शीघ्रता से तालाबों और नजदीक संग्रह क्षेत्रों तक पहुंच पाएगा. यहां वहां अनावश्यक जल भराव से माता कुपित होती हैं. स्ंाक्रामक रोगों के बढ़ने की आशंका बढ़ती है. पानी सड़ने की बदबू जिन क्षेत्रों मंे आती है वहां लक्ष्मीजी कभी निवास नहीं करती हैं.