(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Mirza Ghalib Birth Anniversary: मिर्जा गालिब की जयंती कब है? उनके जीवन से जुड़ी इन पहलूओं के बारे में नहीं जानते होंगे आप
Mirza Ghalib Birth Anniversary: ‘मिर्जा गालिब’ जिन्होंने गजल में जीवन के दर्शन और रहस्यों को दर्शाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गाजिब को खासतौर पर उर्दू जबान के शायर के तौर पर जाना जाता है.
Mirza Ghalib Birth Anniversary: मिर्जा असदुल्लाह बेग खान जिन्हें हम सब मिर्जा गालिब के नाम से जानते हैं. अपनी शायरी के कारण वे न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हैं. आज भी उनका नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है. मिर्जा गालिब वैसे तो फारसी में शायरी किया करते थे, लेकिन उर्दू जबान शायर के तौर पर वे खूब मशहूर हुए.
इसलिए गालिब को उर्दू-फारसी का सर्वकालिक महान शायर कहा जाता है. गालिब ने शायरी और गजल को एक नया रूप दिया. गालिब के पहले गजल को केवल प्रेम के संदर्भ में देखा जाता है. लेकिन उन्होंने गजल में ही जीवन के दर्शन और रहस्य को दर्शाया. जानते हैं गालिब की जयंती और उनके जीवन से जुड़ी खास बातों के बारे में-
कब है मिर्जा गालिब की जयंती (Mirza Ghalib Birth Anniversary)
मिर्जा गालिब का पूरा नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान है. उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 में उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ.उनके पिता का नाम अबदुल्ला बेग और माता का नाम इज्जत उत निसा बेगम था.
गालिब जब सिर्फ 5 साल के थे तभी पिता साया उनके सिर से उठ गया और इसके बाद चाचा द्वारा उनका पालन-पोषण किया जाने लगा. लेकिन कुछ समय बाद चाचा का भी निधन हो गया. फिर वे अपने ननिहाल आ गए. 13 साल की उम्र में उनका निकाह उमराव बेगम से हुआ. मिर्जा गालिब की कोई संतान नहीं है.
मिर्जा गालिब अदबी सफर
मिर्जा गालिब ने 11 साल की उम्र में ही उर्दू और फारसी में गद्य और पद्य लेखन की शुरुआत कर दी. गालिब की शायरी से महफिलों में तालियां बजने लगती थी. वे खड़े-खड़े ही शे'र और गजलें बना लिया करते थे. यही कारण है कि गालिब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान समेत दुनियाभर में करोड़ों दिलों के पसंदीदा शायर हैं.
गालिब की कई गजलें और शेर लोगों के जुबां पर रहते हैं. 1850 में शहंशाह बहादुर जफर ने मिर्जा गालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज्म-उद-दौला के खिताब से नवाजा. इसके बाद उन्हें मिर्जा नोशा का खिताब भी मिला.
गालिब अगर शायर न होते तो उनके खत होते मशहूर
उर्दू भाषा के फनकार और शायर के तौर पर मिर्जा गालिब का नाम आज भी लोग अदब से लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मिर्जा गालिब ने सिर्फ गजलें और शायरी ही नहीं बल्कि कई खत भी लिखें. उनके खतों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि, गालिब के खत को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे गालिब पाठक से बात कर रहें हों. कहा तो यह भी जाता है कि गालिब ने गजलें न लिखी होती तो उनके खत खूब मशहूर होते.
मिर्जा गालिब के जीवन के अंतिम पल
15 फरवरी 1869 को मिर्जा गालिब की मृत्यु हो गई. उन्हें हजरत निजामुद्दीन की दरगाह के पास दफनाया गया. गालिब के मौत के एक साल बाद उनकी पत्नी उमराव बेगम की भी मृत्यु हो गई.
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