(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Mithun Sankrant Katha: मिथुन संक्रांति को क्यों कहते है रज संक्रांति, जानें अति रोचक कथा
Mithun Sankranti 2022 Katha: सूर्य जब मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं तो इस स्थिति को ज्योतिष में मिथुन संक्रांति कहते हैं. इसे रज संक्रांति भी कहा जाता हैं.
Mithun Sankranti 2022 Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, आज बुधवार को बस थोड़ी देर में दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर भगवान सूर्यदेव मिथुन राशि में गोचर करेंगे. इनके गोचर होते ही मिथुन संक्रांति शुरू हो जाएगी. कहा जाता है कि मिथुन संक्रांति के दिन लोग भगवान सूर्य (Mithun Sankranti Puja Vidhi) का पूजा करते हैं और सूर्यदेव प्रसन्न होकर (Mithun Sankranti Ke Upay) अपने जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. मिथुन संक्रांति पूजा में महापुण्य काल का विशेष महत्व होता है. संक्रांति के शुरू होते ही महापुण्य काल भी प्रारंभ हो जाएगा और यह दोपहर बाद 2 बजकर 38 मिनट तक रहेगा.
हिंदू धर्म में मिथुन संक्रांति के दिन से ही वर्षा ऋतु की शुरुआत मानी जाती है. इस दिन सूर्य देव की पूजा करते हुए अच्छी बरसात की कामना की जाती है. इसे रज संक्रांति भी कहते हैं. इस दिन सिल बट्टे की पूजा का विधान भी है. आइये जानते हैं इसकी यह रोचक कथा:-
मिथुन संक्रांति की कथा
हिंदू धर्म की मान्यता है कि प्रकृति ने ही महिलाओं को मासिक धर्म का वरदान दिया था. इसके कारण ही महिलाओं को मातृत्व का सुख प्राप्त होता है. मिथुन संक्रांति की कथा के अनुसार, जिस तरह से महिलाओं को मासिक धर्म होता है उसी प्रकार भूदेवी अर्थात धरती माता को भी शुरू के तीन दिन मासिक धर्म हुआ था. उसके बाद से ही धरती के विकास होने की मान्यता है. चौथे दिन भूदेवी जिसे सिल बट्टा कहा जाता है, को स्नान कराया जाता है. उसके बाद ही घर में सिल बट्टे का उपयोग किये जाने का प्रचलन है. हिंदू धर्म में सिल बट्टे को धरती का रूप माना जाता है. चौथे दिन सिल बट्टे को जल और दूध से स्नान कराने की परंपरा है. इसके बाद सिंदूर चंदन, फूल आदि से इसकी पूजा की जाती है.
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