Mohini Ekadashi 2024: वैशाख माह की मोहिनी एकादशी 19 मई 2024 को है. मोहिनी एकादशी का व्रत करने वालों के पापों का नाश, पुण्य का उदय, शरीर और मन की शुद्धि होती है.
इस व्रत के प्रताप से व्यक्ति मानसिक, वाचिक, सांसारिक दुविधाओं से मुक्त हो कर लक्ष्मी-नारायण की भक्ति कर पाता है. शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत के दौरान कथा का विशेष महत्व होता है. आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी व्रत की कथा और एकादशी व्रत में कथा क्यों की जाती है, क्या है इसकी महीमा.
एकादशी व्रत में कथा सुनने-पढ़ने का महत्व (Why we do Ekadashi Vrat katha)
हिंदू धर्म के अनुसार व्रत के दौरान कथा का श्रवण जरुर किया जाता है. दरअसल पूजा के दौरान व्यक्ति कथा के जरिए उस व्रत का महत्व जान पाता है. महत्व जाने बिना व्रत का कोई अर्थ नहीं. वहीं कथा सुनने या पढ़ने वाला भगवान से संपर्क साधने में सक्षम हो पाता है. चूंकि एकादशी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है इसलिए हर एकादशी की पूजा के दौरान व्रती को कथा पाठ जरुर करना चाहिए, इससे विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है.
महाभारत में एकादशी व्रत कथा का वर्णन (Ekadashi Vrat katha in Mahabharat)
एकादशी व्रत का वर्णन महाभारत की कथा में भी मिलता है. भगवान श्रीकृष्ण (Shri krishna) ने धर्मराज युधिष्ठिर (Yudhishthir) और अर्जुन (Arjun) को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था. चूंकि ये व्रत सभी व्रतों में कठिन और विशेष फलदायी माना गया है, इसीलिए इस व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाता है.
वैशाख के महीने में एकादशी व्रत को विशेष माना गया है. एकादशी व्रत को रखने वालों को नियम का पालन करते हुए एकादशी व्रत कथा को अवश्य सुनना चाहिए. मान्यता है कि जो व्यक्ति एकादशी व्रत में कथा को पढ़ता या सुनता है उसकी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, पापों से मुक्ति मिलती है.
मोहिनी एकादशी व्रत कथा (Mohini Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक राजा राज्य करता था. उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से पूर्ण था. उसका नाम धनपाल था. वह अत्यन्त धर्मात्मा और नारायण-भक्त था. वैश्य के पाँच पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यन्त पापी व दुष्ट था, वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति में रहता था.
बुरी संगत में पापी बना बेटा
मद्यपान, जुआ आदि बुरे कर्मों में उसने अपने पिता का बहुत धन बर्बाद किया. जब काफी समझाने पर भी वह नहीं सुधरा तो उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया. वह अपने गहने और वस्त्रों को बेचकर अपना गुजारा करने लगा. धन खत्म हो जाने पर उसके दुष्ट साथी भी साथ छोड़कर चले गए. इसके बाद वह चोरी कर अपनी भूख को शांत करने लगा लेकिन एक दिन पकड़ा गया, हालांकि सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र जानकर उसे छोड़ दिया. इसके बाद भी जब उसने चोरी करना नहीं छोड़ा तो राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया.
झेलना पड़े तमाम कष्ट
कारावास में उसे बहुत कष्ट झेलना पड़ा, अंत में उसे नगर छोड़ने का आदेश मानना पड़ा. इसके बाद जानवरों को मारकर पेट भरने लगा. एक दिन भोजन की तलाश में वह कौटिन्य मुनि के आश्रम पहुंचा और उसने ऋषि से अपनी पीड़ा बताई.
पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि ने उसे वैशाख माह की मोहिनी एकादशी का व्रत करने को कहा. उसने विधि अनुसार ये व्रत किया, जिसके प्रताप से उसके सभी पाप नष्ट हो गये और अन्त में वह गरुड़ पर सवार हो विष्णुलोक को गया.
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