Mohini Ekadashi 2024: मोहिनी एकादशी पर ही स्वरभानु बना राहु-केतु, जानें कैसे हुआ इन पाप ग्रहों का जन्म
Mohini Ekadashi 2024: सूरज और चंद्र को ग्रहण लगाने वाले राहु-केतु (Rahu Ketu) को पाप ग्रह माना जाता है. राहु-केतु एक ही राक्षस के दो भाग हैं. आइये जानते हैं आखिर क्यों और कैसे हुआ इनका जन्म.
Mohini Ekadashi 2024: राहु-केतु (Rahu Ketu) को ज्योतिष में रहस्यमयी और छाया या पापी ग्रह कहा जाता है. जिसका नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं. आमतौर पर राहु-केतु को सूर्य और चंद्रमा को दंश देने को लेकर जाना जाता है. लेकिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली मोहिनी एकादशी का भी संबंध राहु-केतु से है.
बता दें कि इस वर्ष मोहिनी एकादशी, 19 मई 2024 को है. पौराणिक कथा के अनुसार, वैशाख माह (Vaishakh Month) की इसी एकादशी पर भगवान विष्णु ने मोहिनी (Vishnu Mohini Avatar) अवतार लिया था.
कथा (Story Rahu Ketu) से यह भी पता चलता है कि, दो नाम वाले राहु-केतु (Rahu-Ketu) स्वरभानु राक्षस के दो भाग हैं, जिसके सिर वाले भाग को राहु और धड़ वाले भाग को केतु कहा जाता है. यानी राहु-केतु एक ही शरीर से जन्मे हैं.
सर्प (Snake) की आकृति वाले राहु केतु देखने में जितने भयंकर दिखते हैं, इनका प्रकोप उससे भी अधिक भयंकर होता है. यही कारण है कि राहु-केतु का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं. आइये जानते हैं आखिर स्वरभानु कैसे बना राहु-केतु, कैसे और कब हुआ राहु-केतु का जन्म और मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi 2024) से क्या है इसका संबंध.
लेकिन राहु-केतु के जन्म के बारे में जानने से पहले आपको समुद्र मंथन (Samudra Manthan) की पौराणिक कहानी जानना जरूरी है, क्योंकि इससे राहु-केतु का गहरा संबंध है.
समुद्र मंथन की पौराणिक कथा (Samudra Manthan Katha in Hindi)
समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक और प्रचलित कथा के अनुसार, पौराणिक काल में बलि नामक असुर का राजा था, जोकि बहुत अधिक शक्तिशाली. बलि को असुरी शक्तियों के कारण ही दैत्यराज का स्थान मिला था. दैत्यराज बलि ने अपनी असुरी शक्तियों से तीनों लोकों पर कब्जा कर देवताओं को परेशान करने लगा. उस समय देवराज इंद्र दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण कष्ट भोग रहे थे.
इधर बलि के कारण देवताओं में भय बढ़ने लगा और सभी परेशान हो गए और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के पास जाने का निश्चय किया. उन्होंने असुरराज बलि के बारे में भगवान विष्णु को बताया तो, श्रीहरि ने समुद्र मंथन करने को कहा. लेकिन इस जटिल कार्य को देवता और असुर दोनों मिलकर कर सकते थे. क्योंकि देवता (Devta) और असुरों में बिना संधि के मंथन की प्रक्रिया संभव नहीं थी. इसके बाद असुर और देवता समुद्र मंथन के लिए तैयार हुए और समुद्र मंथन शुरू हुआ.
समुद्र से निकले 14 बहुमूल्य रत्न
समुद्र मंथन से 14 बहुमूल्य रत्न निकले, जिसमें अमृत कलश भी एक था, जोकि सबसे आखिर में निकला. इसी अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन किया गया था.
अमृत कलश (Amrit Kalash) के बाहर आते ही देवताओं और असुरों के बीच विवाद छिड़ गया. इस स्थिति से निपटने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और इस तरह से भगवान ने पहले देवताओं को अमृत पान करा दिया.
ऐसे हुआ राहु-केतु का जन्म (Rahu Ketu Birth Story)
लेकिन जिस पंक्ति में देवता बैठकर अमृतपान कर रहे थे, उसी पंक्ति में वेश बदलकर स्वरभानु असुर भी बैठ गया और अमृत पान कर लिया. लेकिन सूर्य (Surya) और चंद्रमा (Moon) ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु को सारी बात बता दी.
भगवान विष्णु (Vishnu Ji) ने क्रोधित होकर अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया. स्वरभानु अमृत की कुछ बूंदे पी ली थी, जिस कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई. लेकिन स्वरभानु का सिर धड़ से अलग हो गया. उसके सिर वाला भाग राहु (Rahu) और धड़ वाला भाग केतु (Ketu) कहलाया.
कहां हुआ राहु-केतु का जन्म
स्कंद पुराण के अवन्ति खंड के अनुसार महाकाल की नगरी उज्जैन राहु-केतु की जन्म स्थली है. इसी खंड के कथानुसार, जब समुद्र मंथन से अमृत निकला तो देवताओं को इसका पान महाकाल वन में कराया गया.
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